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Tuesday, 7 December 2021

एक रहस्य, गोंदिया अस्पताल का निर्माण सात साल से स्थगीत,  - संजय पाटील

एक रहस्य, गोंदिया अस्पताल का निर्माण सात साल से स्थगीत, - संजय पाटील


गोंदिया: संजय पाटिल: 7: 12: 2021: गोंदिया के सरकारी मेडिकल कॉलेज को सात साल पहले 2015 में मंजूरी मिली थी. पाठ्यक्रम दूसरे वर्ष 2016 में शुरू हुआ। गोंदिया के साथ-साथ बारामती चंद्रपुर में सरकारी मेडिकल कॉलेज की शुरुआत की गई। उनकी अच्छी तरह से सुसज्जित इमारतों को पूरा किया जाने लगा। गोंदिया के लिए स्वीकृत 19 करोड़ रुपये में से केवल 4 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं, इसलिए भवन का मुद्दा अभी भी एक रहस्य है।  गोंदिया के लिए स्वीकृत 19 करोड़ रुपये में से केवल 4 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए हैं। राज्य सरकार की हिस्सेदारी 40 फीसदी और केंद्र सरकार की 60 फीसदी हिस्सेदारी होगी. राज्य सरकार ने 689 करोड़ 46 लाख 81 हजार रुपये सरकार की मंजूरी मिल गई की लागत से एक सुसज्जित मेडिकल कॉलेज, फैकल्टी, स्टाफ क्वार्टर और छात्रों (लड़कों और लड़कियों के लिए स्वतंत्र)  छात्रावास के साथ 25 एकड़ के अस्पताल के निर्माण के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव प्रस्तुत किया। . इससे पहले कॉलेज को संचालन के लिए 19 करोड़ रुपये मिले थे। इसमें से 4 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं और फिलहाल यह राशि लोक निर्माण विभाग के पास है. सात साल बीत जाने के बाद भी एक भी ईंट नहीं रखी गई है। राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी को विफलता के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

नागपुर  महानगर पालिके ने 50 हजार गड्ढों को भरने का किया दावा- संजय पाटिल

नागपुर महानगर पालिके ने 50 हजार गड्ढों को भरने का किया दावा- संजय पाटिल


 नागपुर - संजय पाटिल: 7: 12: 2021 : नागपूर महानगर पालिके के हॉट मिक्स विभाग व दो अन्य संगठनों के दावों के मुताबिक पिछले साढ़े चार साल में शहर में 50,000 गड्ढे भरे जा चुके हैं. हॉट मिक्स विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि एनएमसी की ओर से चार साल आठ महीने में हर दिन 27 गड्ढे भरे जा रहे हैं. नगर निगम के लोक निर्माण विभाग के अनुसार लक्ष्मीनगर झोन में सड़कों की स्थिति सबसे खराब है. हॉटमिक्स विभाग ने 1 अप्रैल 2017 से 29 नवंबर 2021 की अवधि के दौरान 7 हजार 746 गड्ढों की मरम्मत की। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस अंचल की सड़कों की हालत कितनी खराब है. विभाग ने यह भी दावा किया कि मंगळवारी  झोन में करीब 5,700 गड्ढों की मरम्मत की गई. इसके अलावा, विभाग ने आसीनगर व धरमपेठ झोन क्षेत्रों में प्रत्येक में 5,000 गड्ढों की मरम्मत भी की है। नगर यातायात पुलिस ने नगर निगम को शहर की 75 सबसे खराब सड़कों की सूची भी सौंपी है. आंकड़ों के मुताबिक इस जोन में 13 और सीताबर्डी  झोन में 12 सड़कों की हालत बेहद खराब है. इसके अलावा इंदौरा झोन की नौ सड़कों का भी बुरा हाल है। कामठी और सोनेगांव झोन में सात-सात और  सक्करदरा, एमआईडीसी और लकड़ागंज झोन में छह-छह सड़कों की स्थिति बहुत खराब है. पुलिस ने कहा कि व्यस्त कॉटन मार्केट और अजनी  झोन में पांच सड़कों की हालत भी गंभीर है और तत्काल मरम्मत की जरूरत है।

उत्तर नागपूर : आसीनगर 
झोन :- कामगार नगर और कपिल नगर डब्ल्यूसीएल क्वार्टर कपिल नगर एनआई से क्वार्टर चौक से बुधवार बाजार रोड और मैत्री कॉलोनी रोड और गुरुनानक कॉलेज में सड़क पर गड्ढों की भरमार है.कामगार नगर और कपिल नगर डब्ल्यूसीएल क्वार्टर कपिल नगर एनआई से क्वार्टर चौक से बुधवार बाजार रोड और मैत्री कॉलोनी रोड और गुरुनानक कॉलेज में सड़क पर गधों की भरमार है, साथ ही कामगार नगर और कपिल नगर एनआईटी क्वार्टर चौक एलएंडटी गोदावुन वंदना डिस्टिलर जीएम से बन्यातवाला स्कूल से नारी मिनी इंडस्ट्रियल एरिया से रिंग रोड टी पॉइंट, कामगार नगर और कपिल नगर एनआईटी क्वार्टर चौक से मानस मंदिर म्हाडा लेआउट टू ग्लास कंपनी, नॉर्थ नागपुर, कामगार नगर और कपिल नगर एनआईटी क्वार्टर चौक से म्हाडा कॉलोनी से टायरवाला चौक तक, कामगार नगर चौक से दीपक चौक से टायरवाला चौक से मैत्री कॉलोनी, म्हाडा कॉलोनी  रोड बहुत खराब हैं।









Saturday, 27 November 2021

एक तरफ जाम है तो दूसरी तरफ सड़क निर्माण-संजय पाटील

एक तरफ जाम है तो दूसरी तरफ सड़क निर्माण-संजय पाटील


नागपूर : २८ - ११-२०२१ : संजय पाटील  :  दिघोरी और शीतला माता मंदिर के बीच सड़क का काम चल रहा है। काम में देरी हो रही है, दोनों तरफ के वाहन एक ही सड़क पर आ-जा रहे हैं, क्योंकि एक तरफ सड़क बंद है, जिससे जाम की स्थिति बनी हुई है. दिघोरी में उमरेड मार्ग पर सीमेंट सड़क का कार्य प्रगति पर है, दिघोरी से दूसरी ओर शकरधारा शीतला माता मंदिर चौक तक सड़क का निर्माण कार्य प्रगति पर है, जिससे चालकों को एक ओर सड़क निर्माण कार्य का सामना करना पड़ता है और सड़क पर जाम  का सामना करना पड़ता है.
दिघोरी से शीतलामाता मंदिर के रास्ते में नागरिक समय से अपने कार्यस्थल पर नहीं जा रहे हैं, एक तरफ सड़क का काम पूरा हो चुका है, और दूसरी तरफ सड़क निर्माण का कार्य चल रहा है. लेकिन वाहनों की वजह से लोगों को काफी परेशानी हो रही है. यह सड़क वर्तमान में सड़क निर्माण के उद्देश्य से वन-वे लेन हो चूका है. दुकानों में भीड़भाड़ और बसों के आवागमन के कारण इस मार्ग पर कार चालकों के साथ-साथ दोपहिया वाहनों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस सड़क पर पैदल चलने वालों को बेहद कठिन परिस्थितियों में सड़क पर चलने के लिए एक बड़ी कसरत से गुजरना पड़ रहा है. बाजार से निकलने वाले लोगों को अपना ख्याल रख कर सड़कों पर चलना पड़ रहा है.
नागरिकों ने संदेह जताया है कि लोक निर्माण विभाग द्वारा विभिन्न  विभिन्न स्थानों पर सड़क का काम कराया   टुकड़ा टुकड़ा में दिया गया है. चिंता की बात यह है कि अधूरे काम के साथ-साथ वाहनों की लंबी कतारें हादसों का कारण बन रही हैं. इस सड़क का निर्माण कार्य लंबे  समय ले चल रहा है.  


Thursday, 19 August 2021

अधर में लटका भंडारा जिले का अस्पताल का निर्माण : संजय पाटील

अधर में लटका भंडारा जिले का अस्पताल का निर्माण : संजय पाटील

Construction Work

भंडारा. संजय पाटील : जिले में महिला अस्पताल का भूमिपूजन हुए कई वर्ष बीत जाने के बाद भी अस्पताल का निर्माण कार्य अधर में लटका हुआ है. 7 वर्ष से इस अस्पताल के निर्माण को लेकर तरह-तरह के प्रयास किए गए. इसी दौरान कोरोना का संकट उत्पन्न होने से प्रस्तावित अस्पताल का निर्माण कार्य कब शुरू होगा, इस बात को लेकर चर्चाएं शुरू हैं.


विभाजन के बाद से शुरू हुई थी मांग
भंडारा जिले का विभाजन होने के बाद भंडारा तथा गोंदिया  2 जिले बने. जिले के विभाजन के बाद से ही भंडारा जिले में महिला अस्पताल का निर्माण करने की मांग शुरू हो गई थी और इस अस्पताल के निर्माण के लिए जगह देख कर भूमिपूजन भी किया गया. विधायक नरेंद्र भोंडेकर की ओर से लगातार की जा रही मांग के बाद आघाड़ी के शासन काल में भंडारा जिले में स्वतंत्र महिला अस्पताल को मंजूरी मिली. इसके लिए निधि भी मंजूर की गई, लेकिन अस्पताल के लिए उचित स्थान नहीं मिल रहा था. 
जगह खोजने में लगा वक्त
अस्पताल के लिए जगह खोजने में काफी वक्त लग गया. सरकारी जगह पर नजरें गड़ानेवालों की ओर से लगातार जगह को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी रहा. अंतत: भारी खींचतान के बाद 2 वर्ष पूर्व नगर परिषद के जल शुद्धिकरण केंद्र के पास स्थित जगह पर महिला अस्पताल के लिए जगह को मंजूरी मिल गई. उसके बाद तत्कालीन पालक मंत्री डा. परिणय फुके के हाथों इस जगह का भूमि पूजन किया गया. उसके बाद निविदा प्रक्रिया को पूरा कर अस्पताल निर्माण कार्य के शुभारंभ की घोषणा भी की थी, लेकिन निर्माण कार्य के शुभारंभ की घोषणा सिर्फ घोषणा ही बनकर रह गई. बताया जा रहा है कि जिला महिला अस्पताल के निर्माण कार्य की प्रक्रिया अभी शुरू होने ही वाली थी कि कोरोना महामारी का संकट आ गया, जिस वजह से एक बार फिर जिला अस्पताल का निर्माण कार्य अधर में लटक गया है.

Saturday, 6 March 2021

आदिवासी  हिंदू  आहेत  की  नाहीत  ??

आदिवासी हिंदू आहेत की नाहीत ??

 आदिवासी  हिंदू  आहेत
        की  नाहीत  ??
संविधानाने आदिवासींना कोणत्याच धर्माचे मानलेले नाही. आदिवासींची म्हणजे अनुसूचित जनजातीची म्हणजेच शेड्युल्ड ट्राईब्सची वर्गवारी मान्य करतांना संविधानाने त्यांची जगण्याची स्थिती व सांस्कृतिक आधार ही मानदंडे व मापदंडे पाहिली. त्याचवेळी शेड्युल्ड कास्ट व ओबीसी यांची वर्गवारी मान्य करतांना सामाजिक विषमता व धार्मिक आधार हे स्वीकारले.



या देशातील कोट्यवधी आदिवासी अलिकडे अस्तित्वाच्या तिढ्यात गुंतलेय ! हा तिढा म्हणजे आदिवासी हिंदू आहेत की हिंदू नाहीत ? 

         खरेतर, संविधानाने आदिवासींना कोणत्याच धर्माचे मानलेले नाही. आदिवासींची म्हणजे अनुसूचित जनजातीची म्हणजेच शेड्युल्ड ट्राईब्सची वर्गवारी मान्य करतांना संविधानाने त्यांची जगण्याची स्थिती व सांस्कृतिक आधार ही मानदंडे व मापदंडे पाहिली. त्याचवेळी शेड्युल्ड कास्ट व ओबीसी यांची वर्गवारी मान्य करतांना सामाजिक विषमता व धार्मिक आधार हे स्वीकारले. अर्थात भारतातील आदिवासींचा भारतातील हिंदू धर्मासह कोणत्याच धर्माशी तसाही संबंध नव्हता. याशिवाय संविधानाने संविधानाच्या ५ व ६ अनुसूचीमध्ये आदिवासींना विशेष तरतुदी व संरक्षण दिल्याने आदिवासींची स्वतंत्र ओळख अधोरेखित झाली होती. परंतु आदीवासींच्या अलिकडील हिंदुकरणामुळे प्रश्न निर्माण झाला आहे.

         स्वातंत्र्यपूर्व व स्वातंत्र्योत्तर काही वर्षे या देशात आदिवासींचे ख्रिस्तीकरण होत होते. तेव्हा अशी बाब चर्चेला नव्हती. पण जेंव्हापासून संघाने आदिवासींचे हिंदूकरण अर्थात धर्मांतरण करण्यात योजनाबध्द लक्ष घातले तेव्हापासून ही बाब प्रकर्षाने उठली. आधी संघाने आदिवासींना आदिवासी म्हणणे नाकारले. त्याऐवजी वनवासी शब्द रुढ केला.त्यानंतर वनवासी कल्याण आश्रमाच्या माध्यमातून आदिवासीत शैक्षणिक व राजकीय लाभार्थी वाढविले.संघाचा जसजसा देशभर प्रभाव वाढत गेला तसे या कार्याचे ही प्रभावक्षेत्र वाढत गेले.शिवाय, वाढलेल्या लाभार्थ्यांनी हिंदू लिहावे ही मागणी उचलून धरली.

         संघवर्तुळाची या कार्यामागे वैचारिक भूमिकाही आहे. आदिवासी हे हिंदुच आहेत. ते वेगळे नाहीत. हिंदू एक रिलिजन नाही. ती जीवनदृष्टी आहे. हिंदुत्व एक रुपाची Form गोष्ट करीत नाही. एकतेची वा एकत्वाची दृष्टी म्हणजे हिंदुत्व. म्हणून आदिवासी हे हिंदुपासून अलग नाहीत. आदिवासी जर निसर्गपूजक असतील तर हिंदू ही पंचमहाभूते ( पृथ्वी, जल, वायू, तेज, आकाश ) मानतातच. यामुळे आदिवासींची वेगळी सांस्कृतिक व पुजेची ओळख हिंदुसोबत कायम व सुरक्षित राहू शकेल. त्यामुळेच त्यांनी येत्या २०२१ च्या जनगणनेत  हिंदू लिहावे.

एकूण लोकसंख्येच्या ९ टक्के आदिवासी आहेत. भारतात आदिवासींच्या एकूण ७०५ व महाराष्ट्रात ४५ जाती आहेत. सवलती व आरक्षणाचे प्रमाण ७.५ टक्के महाराष्ट्रात १३ टक्के आहे. प्रत्येक राज्यात राज्याचे प्रमाण वेगवेगळे आहे. मात्र, काही राज्ये आदिवासीबहुल आहेत. पण एक खरे की, एससी व ओबीसी यांच्या अस्पृश्यता, इतर मागास घटक व सामाजिक विषमता या बाबींचा संबंध हिंदू धर्माशी होता. आदिवासींचे तसे नाही. ती त्यांची स्वतंत्र ओळख आहे.

         संघाच्या , हिंदू लिहा या आवाहनावर देशभर तीव्र प्रतिक्रिया उमटल्या. झारखंड व आंध्र प्रदेश सरकारने तर विधेयक पारित करून आदिवासी हिंदू नाहीत हा निर्णय घेतला. शिवाय आम्ही हिंदू नाहीत हे सांगण्यासाठी देशभर मोर्चे निघत आहेत. या मोर्चातून, आम्हाला स्वतंत्र धर्म कोड द्या अशी मागणी होत आहे. प्रामुख्याने आदिवासीतील नवी शिकलेली पीढी यात पुढाकार घेत आहे. शिवाय, वेगवेगळ्या ठिकाणी आदिवासींच्या महाग्रामसभा होत आहेत. या सभेत, हिंदू लिहिणाऱ्या आदिवासींच्या सवलती व जातप्रमाणपत्र रद्द करावे अशीही मागणी होत आहे. 

         झारखंडचे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन यांनी नुकतेच हार्वर्ड इंडिया कान्फरंसला संबोधन करतांना यासंदर्भात आपली भूमिका स्पष्ट केली. ते म्हणाले, आदिवासी कधीच हिंदू नव्हते. आजही नाहीत. आदिवासींची संस्कृती, सभ्यता व व्यवस्था वेगळी आहे. हे वेगळेपण हीच खरी ओळख. आम्ही धर्म म्हणून हिंदू कशाला ? सरना धर्म लिहू असेही ते म्हणाले. 

         आदिवासीतील जाणकार ही लिहू लागले आहेत. ते लिहितात, आदिवासींचा हिंदुत दर्जा काय राहील ? शूद्र की अस्पृश्य ? हिंदुंच्या सर्व देवांनी ज्या राक्षस, दैत्य, दानव, असुर यांची हत्या केली हे कोण होते ? याची आधी उत्तरे द्यावीत. 

         असे हे आदिवासी जगतात सुरू आहे. अर्थात कळीचे मुद्दे बुचकळ्यात गेले आहेत. कुठे मुसलमान घाबरवून आहेत. कुठे ख्रिश्चन घाबरून गेले आहेत. आता आदिवासी संभ्रमात आहेत.


लेखक :  रणजित मेश्राम 
 

Wednesday, 9 September 2020

‘सिंचन म्हणजे भ्रष्टाचार’ - भारताचे नियंत्रक आणि महालेखापरीक्षक (कॅग)

‘सिंचन म्हणजे भ्रष्टाचार’ - भारताचे नियंत्रक आणि महालेखापरीक्षक (कॅग)

 

सिंचनात, बांधकाम विभागात ठेकेदारांवर मेहेरबानी आणि जलयुक्त शिवार योजनेत अपयश :संजय पाटील

संजय पाटील : नागपुर प्रेस मीडिया: मुंबई :    : देवेंद्र फडणवीस यांच्या नेतृत्वाखालील सरकारच्या काळातील शेवटच्या वर्षांतील कारभाराचा लेखाजोखा मांडणारा कॅगच्या अहवालात मागील वर्षी सार्वजनिक बांधकाम विभागाने मनमानीपणे एका कंत्राटदाराकडील काम काढून दुसऱ्याला वाढीव दराने दिल्याने पावणेतीन कोटी रुपयांची उधळपट्टी झाल्याचे आणि सदोष नियोजन-भूसंपादन न करताच काम सुरू करणे यासारख्या प्रकारांमुळे जलसंपदा विभागाच्या कामांमध्ये २११ कोटी रुपयांची उधळपट्टी झाल्याचे ताशेरे कॅगने ओढले आहेत. पावसाळी अधिवेशनात मागील वर्षांतील आर्थिक क्षेत्रावरील अहवाल सादर झाला असून त्यात तत्कालीन सार्वजनिक बांधकाममंत्री चंद्रकांत पाटील व जलसंपदामंत्री गिरीश महाजन यांच्या खात्यांमधील गैरकारभारावर ताशेरे ओढण्यात आले आहेत.

सार्वजनिक बांधकाम विभागाने शीव-पनवेल महामार्गाच्या कामाचे काही टप्प्यांतील काम एका कंत्राटदाराकडून काढून घेतले व निविदा न काढताच दुसऱ्या कं त्राटदाराला वाढीव दराने दिले. यामुळे २ कोटी ८६ लाखांचा विनाकारण खर्च झाला. तो टाळता आला असता, असे कॅगच्या अहवालात नोंदवण्यात आले आहे. तसेच पहिल्या कंत्राटदाराकडून काम काढून घेण्याची प्रक्रिया सुरू होण्याआधीच दुसऱ्याला काम सुरू करण्यास सांगण्यात आल्याचे दिसते, असेही म्हटले आहे.

सिंचन प्रकल्पांच्या कामातही  उधळपट्टी झाल्याचे कॅगचा अहवाल सांगतो. अंजनी मध्यम प्रकल्पाची उंची वाढवण्याचे काम भूसंपादन न करताच सुरू केल्याने ३२.३८ कोटी रुपयांचा वायफळ खर्च झाला. वाघूर प्रकल्पातही याच रीतीने ४.३८ कोटी रुपयांची उधळपट्टी झाली. माजलगाव उपसा सिंचन योजनेतही ऑक्टोबर २०१५ मध्ये कंत्राटदाराला ११७ कोटी रुपये देण्यात आले; पण सदोष नियोजनामुळे २०१९ मध्येही काम सुरू झाले नव्हते, याकडे कॅगने लक्ष वेधले आहे. अव्यवहार्य असतानाही मराठवाडय़ातील उणके श्वर प्रकल्पाच्या कामात ५५ कोटी २२ लाखांची उधळपट्टी झाल्याचे ताशेरेही कॅ गने ओढले आहेत. याबरोबरच इतरही प्रकल्पांतही अशा प्रकारे वायफळ पैसे खर्च झाल्याचे कॅगने म्हटले आहे.

जलयुक्त शिवार योजनेत अपयश

मुंबई : तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांची अतिशय महत्वाची जलयुक्त शिवार योजना असफहल झाल्याचा ठपका नियंत्रक व महालेखा परीक्षक ” कैग ” ने ठेवला आहे. ही बाब भाजप – शिवसेना सरकारच्या कार्यकाळात सर्वाधिक चर्चेत राहिलेली आहे. राज्यातील गावे दुशकाळमुक्त करण्याचे ‘जलयुक्त शिवाराची ‘ उद्दीष्ट्ये सफल झाले नाहीच शिवाय अनेक गावामध्ये भूजल पातळी वाढण्याऐवजी घटली, असे कैग ने म्हटले असून, तत्कालीन सरकार साठी हा मोठा धक्का
मानला जात आहे.

जलयुक्त शिवार योजेनेवर ९ हजार ६३४ कोटी रुपये खर्च करूनही राज्यातील पाण्याची गरज भागवण्यात, तसेच भूजल पातळी वाढवण्यात अपयश आल्याचा गंभीर ठपकाठेवून कैग ने अहवालात ठेवून मंगळवारी विधिमंडळात मांडण्यात आला.जलयुक्त शिवाराच्या कामाची कोणतीही गुनवता तपासण्याची कार्यपद्धती अवलंबिली नाही. जलयुक्त शिवार योजनेसंदर्भात कैग ने पाहणी केलेल्या १२० गावापैकी एकही गावात दुरुस्ती व देखभालीसाठी राज्य सरकारने अनुदान दिले नाही. पाच जिल्ह्यांमध्ये अहमदनगर, बीड , बुलढाणा , सोलापूर आणि नागपूरयेथे जलयुक्त शिवाराची कामे योग्य रित्या झाली नाहीत. या जिल्ह्यात जलयुक्त शिवारात झालेल्या भ्रस्टाचाराची साक्ष तिथले साप्ताहिक पेपर आणि दैनिक वर्तमान पत्रात देखील प्रकाशित झालेली आहेत. या कामासाठी २६१७ कोटी रुपयांचा खर्च झाला होता. याकडे कैग ने लक्ष वेधले होते. पाण्याची साठवण निर्मिती कमी असतानाही काही गावे जलपरिपूर्ण म्हणून घोषित केले होते कैग ने म्हटले आहे. या कामाची छायाचित्रे वेबसाईटवर टाकण्यात आली नाहीत. अनेक कामांचे त्रयस्त संस्थेकडून मूल्यमापन झाले नाही, अशी पुष्टीही कैग ने जोडली आहे.

माजी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी प्रतिष्ठेच्या केलेल्या जलयुक्त शिवार योजनेत अनेक त्रुटी होत्या, त्रयस्थ संस्थेकडून त्याचे मूल्यमापन झाले नाही आणि नियोजनाअभावी गावांचा तेवढा फायदाही झाला नाही, असा ठपका ठेवतानाच ९,६३३ कोटी रुपये खर्चूनही भूजलातील पाण्याची पातळी वाढविण्यात अपयश आले, असे ताशेरे भारताचे नियंत्रक आणि महालेखापरीक्षकांनी (कॅग) अहवालात ओढले आहेत. यावरून आता शिवसेनेनं निशाणा साधला आहे. शेवटी ‘नाव मोठे लक्षण खोटे’ अशी जलयुक्तची अवस्था असल्याचं म्हणत शिवसेनेनं यावर टीका केली.

कुठलीही योजना कागदावर चांगलीच असते. तिचा उद्देशही चांगलाच असतो. प्रश्न असतो तो पारदर्शक आणि प्रभावी अंमलबजावणीचा. त्यात जेव्हा गडबड होते तेव्हा त्यावरून केलेली बडबड ‘पोकळ’ आणि खर्च ‘वायफळ’ ठरतो. जलयुक्त शिवार योजनेचे तेच झाले. ‘कॅग’ने मारलेल्या ताशेऱ्यांचा तोच अर्थ आहे, असं शिवसेनेनं म्हटलं आहे.

काय म्हटलंय अग्रलेखात?

आधीच्या फडणवीस सरकारने ज्या अनेक योजनांचा गाजावाजा केला त्यापैकी जलयुक्त शिवार ही एक योजना होती. मात्र इतर योजनांबद्दल जे आक्षेप नोंदवले गेले तेच जलयुक्त शिवार योजनेबाबतही घेतले गेले. फडणवीस सरकार असतानाही तज्ञांनी या योजनेवर टीका केली होती. मात्र फडणवीस आणि मंडळींनी ही टीका चुकीची तसेच राजकीय असल्याचे सांगत जलयुक्त शिवार योजनेचे जोरदार समर्थन केले होते. आता प्रत्यक्ष ‘कॅग’नेच या योजनेच्या यशावर प्रश्नचिन्ह उभे केले आहे. त्यावर जलयुक्त शिवार योजनेचा डिंडोरा पिटणाऱ्यांचे काय म्हणणे आहे? या योजनेचा हेतू तर साध्य झाला नाहीच, शिवाय गावे दुष्काळमुक्त करण्याचा दावाही फोल ठरला.

विरोधी पक्षांचे आरोप ‘राजकीय हेतूने प्रेरित’ होते असे वादासाठी गृहीत धरले तरी ‘कॅग’ने मागील सरकारच्या दाव्याचा फोलपणा उघड केला आहे. फडणवीस सरकारने वर्षानुवर्षे सुरू असलेला ‘पाणलोट क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ बंद केला. त्यातील १२ योजनांचे एकत्रीकरण केले आणि त्याचे ‘जलयुक्त शिवार योजना’ असे बारसे केले. ही योजना म्हणजे जणू ‘महाराष्ट्र दुष्काळमुक्त झाला हो’ असे वातावरण निर्माण केले गेले. वास्तविक, या योजनेच्या मर्यादा, तांत्रिक उणिवा, अंमलबजावणीतील दोष यावर तज्ञ आणि विरोधकांनीही वेळोवेळी बोट ठेवले होते; पण त्या सर्वांची हेटाळणी केली गेली. आता ‘कॅग’नेच ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ केले.

मागील सरकारने योजनेच्या यशाचा भुलभुलैया कायमच ठेवला. अर्थात त्याचे वास्तव आधी महाविकास आघाडी सरकारच्या लक्षात आले आणि आता ‘कॅग’ने उरलासुरला पडदादेखील दूर केला. २०१२ ते २०१५ या काळात महाराष्ट्रावर कायम दुष्काळाचे सावट राहिले. त्याशिवाय ‘सिंचन म्हणजे भ्रष्टाचार’ असे एक वातावरण ‘कॅग’च्याच अहवालांचे दाखले देत तयार करण्यात आले होते. ज्यांनी हे केले त्यांच्याच हातात राज्याची सूत्रे आली होती. त्यामुळे ‘जलयुक्त’च्या माध्यमातून महाराष्ट्र ‘दुष्काळमुक्त’ करण्याची संधी या मंडळींना होती, पण ती त्यांनी गमावली असे आता आम्ही नाही, तर ‘कॅग’नेच म्हटले आहे.





Saturday, 18 July 2020

नितीन राऊत,"बौद्ध थीम पार्क जागतिक पर्यटकांना शहरात आकर्षित करण्यासाठी": संजय पाटील

नितीन राऊत,"बौद्ध थीम पार्क जागतिक पर्यटकांना शहरात आकर्षित करण्यासाठी": संजय पाटील

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संजय पाटील : नागपूर प्रेस मिडिया : १ ९ जुलै २०२० : नागपूर:  पालकमंत्री झाल्यानंतर डॉ नितीन राऊत यांनी शहरात एक भव्य बौद्ध थीम पार्क विकसित करण्याचे वचन दिले होते. शनिवारी उच्चस्तरीय बैठक घेण्यात आली तेव्हा तेथे त्यांनी बौद्ध थीम पार्कला जागतिक पर्यटकांचे आकर्षण ठरविण्यासाठी दृष्टीकोन योजना तयार करण्याच्या सूचना अधिकाs्यांना दिल्या. या आश्वासनाचे ते पालन करीत आहेत.

या बैठकीत नागपूरचा चेहरामोहरा बदलणा l्या अनेक योजनांचे अनावरण केले. या बैठकीला केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी, गृहमंत्री अनिल देशमुख, रामटेक खासदार कृपाल तुमाने, आमदार विकास ठाकरे, विभागीय आयुक्त डॉ संजीव कुमार, मनपा आयुक्त तुकाराम मुंढे, जिल्हाधिकारी रवींद्र ठाकरे, नागपूर महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण आयुक्त शीतल उगले, प्रमुख उपस्थित होते. कार्यकारी अधिकारी योगेश कुंभेजकर. डॉ नितीन राऊत म्हणाले, “बौद्ध थीम पार्क हे इतर प्रकल्पांव्यतिरिक्त माझे मोठे स्वप्न आहे आणि मी त्या पूर्ण होण्याच्या प्रयत्नात आहे. उद्यान फुटाळा तलावाच्या आवारात येईल. हे जगातील सर्वोत्तम असेल. ” बौद्ध थीम पार्कबरोबरच बैठकीत चर्चा झालेल्या इतर प्रकल्पांमध्ये जागतिक स्तरावरील यशवंत स्टेडियम परिसरातील एनर्जी एज्युकेशनल पार्क, भव्य हनुमान मूर्ती स्मारक, सेल्फी पॉईंट, व्यवसाय केंद्र यांचा समावेश आहे.

नागपूरच्या चौफेर विकासाबाबत बैठकीत चर्चा झाली. डॉ. राऊत म्हणाले, “एनर्जी पार्कच्या माध्यमातून उर्जा संसाधनांना हरित उर्जा व इतर आधुनिक घटकांचा आधार दिला जाईल. या प्रकल्पात बाग, सौर ऊर्जा प्रणाली, सौर, बायोमास लाइव्ह मॉडेल्स, सौर चार्जिंग स्टेशन असतील. कोराडी मंदिराजवळ हनुमानाची भव्य मूर्ती उभारली जाईल. ”

“ही योजना दहा वर्षांची असेल आणि काम तीन टप्प्यात पूर्ण होईल. या कामांमध्ये मेट्रो व इतर वाहतूक व्यवस्था पूर्ण करणे, नद्यांना प्रदूषणमुक्त करणे, शहराला अत्याधुनिक देखावा देण्यात यावा. केंद्र सरकारच्या अनेक कार्यालयांमध्ये मोकळ्या जागा आहेत ज्या वृक्षारोपण करण्यासाठी वापरल्या जातील. आर्किटेक्ट, नियोजक, वाहतूक एजन्सी, पुरवठादार यांच्या सूचना मान्य केल्या जातील व त्याबाबत विचार केला जाईल, असे डॉ. राऊत यांनी स्पष्ट केले.