Sunday, 7 April 2019

अंबेडकर समुदाय को कांग्रेस-भाजपा के साथ नहीं जाना चाहिए : एक आदर्श मंथन : संजय पाटील

अंबेडकर समुदाय को कांग्रेस-भाजपा के साथ नहीं जाना चाहिए : एक आदर्श मंथन : संजय पाटील

The Ambedkar community should not be interspersed with the Congress-BJP | आंबेडकरी समाजाने काँग्रेस-भाजपमागे फरफटत जाऊ नये
संजय पाटील द्वारा: नागपूर : 7 : 4 : 2019 : कांग्रेस और भाजपा दोनों एक ही हैं। अम्बेडकरवादी समुदाय उनके साथ नहीं जाना चाहिए । इसलिए, कांग्रेस और भाजपा की आवश्यकता के बिना समाज की आत्म-शक्ति को प्रदर्शित करने की आवश्यकता है,  सूर संविधान चौक में आयोजित चर्चा में निकाला ।
लॉर्ड बुद्ध टीव्ही  ने शनिवार को संविधान चौक में एक संगोष्ठी का आयोजन किया। 'लोकसभा चुनाव 2019 और अंबेडकर समाज' इस संगोष्ठी का विषय था। विभिन्न पार्टी प्रतिनिधियों को अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया गया था। इसमें कांग्रेस से संजय मेश्राम, बीजेपी से धर्मपाल मेश्राम,  वंचित बहुजन आघाडीतर्फे रवी शेंडे  बसपाकडून उत्तम शेवडे  मौजूद थे। इसके अलावा, नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. पूरन चंद्र मेश्राम भी मंच पर थे।
 लॉर्डबुद्ध टीवी निर्देशक भय्याजी खैरकर ने इस भूमिका को विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, नागपुर बौद्ध अम्बेडकररी समुदाय काबालेकिल्ला रहा है। लेकिन इस की ताकत हाल ही में हुए चुनावों में नहीं देखी गई। इस लोकसभा चुनावों में, अंबेडकर समुदाय की सटीक भूमिका होनी चाहिए, इस संबंध में चर्चा चल रही है।
इस समय विभिन्न दलों के विभिन्न प्रतिनिधियों ने अपनी पार्टी की भूमिका को स्पष्ट किया। नागरिकों ने भी कई मुद्दों पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उदाहरण के लिए, नागरिकों ने खैरलांजी मुद्दे पर कांग्रेस को आड़े हाथों लिया। यह पूछे जाने पर कि क्या खैरलांजी मामले से संबंधित व्यक्ति को उम्मीदवारी दी गई थी, लोगों ने आरक्षण और संवैधानिक मुद्दों पर भाजपा को घेरा।
एक सांसद और एक विधायक पाने के लिए अन्य दलों के साथ गठबंधन नहीं होना चाहिए।
वह इस संगोष्ठी में  इस तरह के मुद्दों को आरक्षण, रोस्टर, पाली भाषा के विषयों, पदोन्नति को बढ़ावा देने, छात्रवृत्ति और अन्य मुद्दों के साथ अन्य दलों द्वारा नेतृत्व किया जाना चाहिए।
 सचिन मून , राजू मून, महेश नागपुरे, दत्ताजी गजभिए, अजय डोंगरे, दिनेश सोमकुन, कुणाल कांबले, सिद्धार्थ सोनारे द्वारा निर्देशित लॉर्ड मून भी उपस्थित थे।
डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर को रोकने के लिए काम कांग्रेस शुरू से ही कर रही है। बाबासाहेब ने बौद्ध भारत का सपना देखा था और समाज को शासक बनाने का सपना देखा था। इस पर चिंतन करने की वास्तविक आवश्यकता है।

 रवी शेंडे
वंचित बहुजन आघाडी
डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर ने हमें संविधान दिया। लेकिन समुदाय को संविधान का अधिकार नहीं मिला है। इतने सालों तक सत्ता में रही कांग्रेस  की वजह  से यह नहीं मिला। हर अधिकार प्राप्त करणे के लिये  के लिए आंदोलन  आंदोलन कारण पडा। सड़कों पर उतरना शुरू कर दिया। इसलिए अब आपको अपनी लड़ाई लड़नी होगी।

उत्तम शेवडे
बसपा
.डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को रोकने के लिए कांग्रेस शुरू से ही काम कर रही है। बाबासाहेब ने बौद्ध भारत का सपना देखा था और समाज को शासक बनाने का सपना देखा था। इस पर चिंतन करने की वास्तविक आवश्यकता है।
संजय मेश्राम
काँग्रेस
कांग्रेस पर आरोप लगाया गया है। लेकिन अगर कांग्रेस वास्तव में बहुजन समाज के खिलाफ थी, तो डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को संविधान लिखने का अधिकार क्यों दिया गया? आज की स्थिति को समझें। आज जो चल रहा है, उसके बारे में सोचें।

धर्मपाल मेश्राम
भाजपा
चुनाव के बारे में सोचे बिना सामाजिक मुद्दों के बारे में सोच जा सकता है। डॉ। बाबासाहेब अम्बेडकर को त्रिकुटी संविधान में समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा बताया गया है। जब सभी विचारधारा द्वंद्व नहीं है, तो सभी विचारकों के लिए अपने हाथों को हाथ में रखना और मानव कल्याण के बारे में सोचना संभव है।

डॉ. पूरन चंद्र मेश्राम
अम्बेडकर विचारधारा
डॉ.बाबासाहेब अम्बेडकर ने हमें त्रिकुटी दी है, वह है रिपब्लिकन पार्टी, संविधान और बौद्ध धर्म। आज ये तीन  क्या हैं, इस बारे में सोचने की जरूरत है। यद्यपि अम्बेडकर आंदोलन के कुछ नेता या कार्यकर्ता विभिन्न दलों में उपस्थित हो सकते हैं, लेकिन उनके सामाजिक कार्य को कम नहीं किया जा सकता है। आंदोलन की एकता के लिए सभी को एकजुट होने की जरूरत है।

Friday, 5 April 2019

 शेरनी कि दहाड : चौकीदार की नौटंकी बंद करें:  मायावती

शेरनी कि दहाड : चौकीदार की नौटंकी बंद करें: मायावती




















संजय पाटील द्वारा : नागपूर-ाभाजप के 'मैं भी चौकीदार'’और कांग्रेस के 'चौकीदार चोर हैं'  दोनों राजनीतिक माहौल में आग उगल रहे , जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने दोनों मुख्य दलों पर ऐसे शब्दों में हमला किया,'चौकीदारकी  नौटंकी बंद करो ’। भाजपा और कांग्रेस अपनी घोषणा से देश को बेवकूफ बना रहे हैं,
बीएसपी ने शुक्रवार को नागपुर के कस्तूरचंद पार्क से महाराष्ट्र के लोकसभा चुनाव के लिए अभियान का उद्घाटन किया। मायावती ने भाजपा और कांग्रेस दोनों की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, 'देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं। गरीबों, वंचितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों को पहरा देकर परेशान किया जा रहा है। घृणा और सांप्रदायिक राजनीति द्वारा झूठे समूह बनाए जा रहे हैं। किसान, बेरोजगार, छोटे व्यापारी, महिलाएं शुरू से ही दुखी हैं। नोटबंदी और जीएसटी लागू करने से देश की अर्थव्यवस्था सूनी हुई है, गरीबी बढ़ी है। मध्यम वर्ग के लोग प्रभावित हुए। आज भी देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं है। कांग्रेस ने बोफोर्स बनाया, भाजपा राफेल ने। सीबीआई, ईडी, आईटी का दुरुपयोग इसलिए, दोनों दल एक  मालाकेमनीं हैं। '
कांग्रेस के दौरान अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय हुआ। वे आज सत्ता से बाहर हैं क्योंकि उन्होंने अपनी नीतियों को खो दिया है। इस देश में पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को सीढ़ी प्रदान की जाती है। उनके हित के निर्णय लिए जाते हैं। उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहते हुए, हमने गरीब लोगों के लिए निर्णय लिए। गुंडों को जेल में अपना सही स्थान दिखाया है। यदि आपके हाथ में शक्ति है, तो आप धार्मिक अन्याय को समाप्त करेंगे। हम एक व्यापक समाज और भाईचारा बनाएंगे। मायावती ने यह भी आश्वासन दिया कि भ्रष्टाचार आम लोगों के लिए स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा।

इससे पहले, समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अबू आज़मी ने 'दिल्ली में  फेकू  सरकार को गिराने' की अपील की। सत्ता में बैठे लोग संविधान के महत्व को नहीं समझते हैं यदि आप देश को एक साथ रखना चाहते हैं, तो सुरक्षा संरक्षकों को शक्ति दें, ”उन्होंने कहा। बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा, आकाश आनंद, बसपा सांसद प्रभारी डॉ। अशोक सिद्धार्थ, प्रदेश अध्यक्ष सुरेश सखारे, अधिवक्ता। संदीप तजाने, कृष्णा बेले, सपा महासचिव परवेज सिद्दीकीउत्तम शेवडे प्रसिद्धी  प्रमुख और बसपा के सभी उम्मीदवार उपस्थित थे।

Wednesday, 3 April 2019

बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण वैचारिक क्रांति : पद्मश्री डॉ सुखदेव थोरात

बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण वैचारिक क्रांति : पद्मश्री डॉ सुखदेव थोरात

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संजय पाटिल द्वारा : वर्धा--आधुनिक भारत में, बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण 1956 से हुआ। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के पूर्व अध्यक्ष  सोचते हैं कि बौद्ध धर्म का पुनर्जागरण एक वैचारिक और मनोवैज्ञानिक क्रांति है। पद्मश्री डॉ.सुखदेव थोराट ने व्यक्त किया।

महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, पाली सोसाइटी ऑफ इंडिया और डॉ। भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के सहयोग से ग़ालिब हॉल में पाली दिवस के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वह इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। कार्यकारी कुलपति प्रो.मनोज कुमार कार्यकारी रजिस्ट्रार प्रो.ए ए डॉ.सिंह, पाली सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भिक्षु स्वरूपानंद महाथेरो, प्रो. बालचंद खांडेकर डॉ.सत्यपाल, भदंत सदानंद महाथेरो, प्रो.अंगराज चौधरी, प्रो. बालचंद खांडेकर, डॉ.एम एल कासरे, प्रो.भागचंद जैन, प्रो. रमेश चंद्र नेगी, रमेश प्रसाद, भिक्षु नंदराटन, भिक्षु धम्माचार्य मौजूद थे। संचालन डाॅ. भदंत आनंद कौशल बौद्ध अध्ययन केंद्र के प्रभारी और स्थानीय संयोजक डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने किया है। स्वागत कार्यकारी कुलसचिव प्रो. ए ए सिंह ने किया है।

डॉ.थोराट ने कहा, बौद्ध धर्म के पुनर्जागरण के संबंध में, इसे राइज, फॉल और ट्रांसफॉर्मेशन के तीन तथ्यों को ट्रैक करना चाहिए। व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में धर्म महत्वपूर्ण है और यह नैतिक मूल्यों को सिखाता है। अपने व्यापक बयान में, उन्होंने बौद्ध धर्म में मूल्य, विकास और धर्म की आवश्यकता के लिए कई ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ दिए।

अध्यक्षीय भाषण में कार्यकारी कुलपति प्रो.मनोज कुमार ने कहा कि महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे का मानव धर्म मानव कल्याण के लिए उपयोगी है। मनुष्य का अवतार बनाना खतरनाक है। उन्होंने यह भी कहा कि धर्म पर भ्रामक साहित्य की सच्चाई को उजागर करने के लिए अकादमिक स्तर पर शोध किए जाने की आवश्यकता है। इस समय डॉ. ज्ञानदित्य शाक्य, डॉ। नंदड़त थानवीर, नागपुर। राखी बडोले की मराठी पुस्तक 'पाली ग्रामर', अजय मौर्य की  Books 'डॉ. भीमराव अंबेडकर के सामाजिक संघर्ष ’की पुस्तकें प्रकाशित हुईं। कार्यक्रम में पाली सोसाइटी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ। भिक्षु स्वरूपानंद महतो डॉ. सुरजीत कुमार सिंह को महाराष्ट्र पाली सोसाइटी का अध्यक्ष घोषित किया गया। कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र की अध्यक्षता में।

वर्धा----आधुनिक भारतात बौद्ध धर्माचे पुनर्जागरण १९५६पासून झाले. बौद्ध धर्माचे पुनर्जागरण एक वैचारिक आणि मानसिक क्रांती होय, असे विचार विद्यापीठ अनुदान आयोगाचे माजी अध्‍यक्ष पद्मश्री डॉ. सुखदेव थोरात यांनी व्‍यक्‍त केले.
महात्‍मा गांधी आंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालयात पाली सोसायटी ऑफ इंडिया आणि विश्‍वविद्यालयातील डॉ. भदन्त आनंद कौशल्‍यायन बौद्ध अध्‍ययन केंद्राच्‍या संयुक्‍त विद्यमाने गालिब सभागृहात पाली दिनानिमित्त आंतरराष्‍ट्रीय चर्चासत्र आयोजित करण्यात आले होते. उद्घाटनप्रसंगी मुख्‍य वक्‍ता म्‍हणून ते बोलत होते. कार्यक्रमाच्‍या अध्‍यक्षस्‍थानी कार्यकारी कुलगुरू प्रो. मनोज कुमार होते. व्यासपीठावर कार्यकारी कुलसचिव प्रो. के. के. सिंह, पाली सोसायटी ऑफ इंडियाचे अध्‍यक्ष डॉ. भिक्षु स्‍वरूपानंद महाथेरो, कोलकाताचे संघनायक डॉ. सत्‍यपाल, भदन्त सदानंद महाथेरो, प्रो. अंगराज चौधरी, प्रो. बालचंद खांडेकर, डॉ. एम. एल. कासारे, प्रो. भागचंद जैन, प्रो. रमेश चंद्र नेगी, रमेश प्रसाद, भिक्षु नंदरत्‍न, भिक्षु धम्‍मप्रिय उपस्थित होते. कार्यक्रमाचे संचालन डॉ. भदन्त आनंद कौसल्‍यायन बौद्ध अध्‍ययन केंद्राचे प्रभारी तथा स्‍थानिक संयोजक डॉ. सुरजित कुमार सिंह यांनी केले. स्‍वागत कार्यकारी कुलसचिव प्रो. के. के. सिंह यांनी केले.
डॉ. थोरात म्‍हणाले, बौद्ध धर्माच्‍या पुनर्जागरणा संदर्भात त्‍याचा उदय, पतन आणि परिवर्तन या तीन तथ्‍यांचा मागोवा घेतला पाहिजे. धर्म व्‍यक्तिगत आणि सामाजिक जीवनात महत्‍वाचा असून त्‍यातून नैतिक मूल्‍याची शिकवण मिळते. आपल्‍या सारगर्भित वक्‍तव्‍यात त्‍यांनी बौद्ध धर्मातील मूल्‍य, विकास आणि धर्माची गरज प्रतिपादित करत अनेक ऐतिहासिक आणि सामाजिक संदर्भ दिले.
अध्‍यक्षीय भाषणात कार्यकारी कुलपति प्रो. मनोज कुमार म्‍हणाले, महात्‍मा गांधी आणि आचार्य विनोबा भावे यांचा मानव धर्म मानवाच्‍या कल्‍याणाकरिता उपयोगी ठरतो. मनुष्‍याला अवतार बनविणे घातक आहे. धर्माविषयी भ्रामक साहित्‍याची सत्‍यता उलगडण्‍यासाठी शैक्षणिक पातळीवर संशोधनाची गरज आहे असेही ते म्‍हणाले. यावेळी डॉ. ज्ञानादित्‍य शाक्‍य, नंदरत्‍नस्‍थवीर, नागपूरच्‍या डॉ. रेखा बडोले यांचे मराठी पुस्‍तक 'पाली व्‍याकरण', अजय मौर्या यांचे 'डॉ. भीमराव आंबेडकर का सामाजिक संघर्ष' या पुस्‍तकांचे प्रकाशन करण्‍यात आले. कार्यक्रमात पालि सोसायटी ऑफ इंडियाचे अध्‍यक्ष डॉ. भिक्षु स्‍वरूपानंद महाथेरो यांनी डॉ. सुरजित कुमार सिंह यांना महाराष्‍ट्र पाली सोसायटीचे अध्‍यक्ष घोषित केले. चर्चासत्राचा समारोप कुलपति प्रो. गिरीश्‍वर मिश्र यांच्‍या अध्‍यक्षतेखाली झाला.

Tuesday, 2 April 2019

बीजेपी को मतदान मत देना; भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आझाद 'रावण'  की अपील

बीजेपी को मतदान मत देना; भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आझाद 'रावण' की अपील


संजय पाटील द्वारा : अमरावती---महाराष्ट्र दौऱ्यावर असलेले भीम आर्मीचे प्रमुख चंद्रशेखर आझाद 'रावण' यांच्या मुंबई, पुणे, लातूर येथे सभा होणार होत्या. मात्र, परवानगी नाकारण्यात आल्याने या तिन्ही ठिकाणी सभा होऊ शकल्या नाहीत. दरम्यान, आझाद यांच्या अमरावती येथील सभेला पोलिसांनी परवानगी दिल्यानंतर येथील सायन्स कोअर मैदानावर आज आझाद यांची महाराष्ट्रातील पहिली सभा झाली. या सभेत आझाद यांनी केंद्र व राज्यातील भाजप सरकावर कडाडून हल्ला चढविला. पंतप्रधान नरेंद्र मोदी, राज्याचे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उत्तर प्रदेशचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तसेच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघासह हिंदुत्ववादी संघटनांवर आझाद यांनी जोरदार टीकास्त्र सोडले.

महाराष्ट्रात आपणास सलग तीन दिवस नजरकैदेत ठेवण्यात आले. सभांवर बंदी घालण्यात आली. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांना काहींनी माझी सभा होवू न देण्याची विनंती केली. माझ्या सभेला परवानगी नाकारल्याने देशभरात पडसाद उमटले. पंतप्रधान मोदी व मुख्यमंत्री फडणवीस यांचे पुतळे जाळण्यात आले. यामुळे घाबरलेल्या सरकारने शेवटी आपणास अमरावतीत सभा घेण्याची परवानगी दिली, असे आझाद म्हणाले.

२०१९ मध्ये भाजप पुन्हा सत्तेत आल्यास संविधान राहणार नाही. तुमचे व माझे अस्तित्व राहणार नाही. त्यामुळे लोकसभेची आगामी निवडणूक ही केवळ निवडणूक नसून अस्तित्वाची लढाई आहे. पूर्ण ताकदिनीशी आपल्याला या निवडणुकीत भाजपचा पराभव करायचा आहे, असे आवाहन आझाद यांनी केले. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर यांनी देशाला संविधान दिले आहे. याच संविधानावर देश चालविला गेला पाहिजे, असेही त्यांनी निक्षून सांगितले.

अन्यायाचा प्रतिकार करा, असे संविधानात म्हटले आहे. त्यामुळे तुमच्यावर हल्ला झाल्यास तो परतवून लावा. देशात संविधानापेक्षा कोणीही मोठा होऊ शकत नाही. तसे झाल्यास त्यांना त्यांची जागा दाखवून द्यायला हवी. प्रत्येक बहुजनाने व बाबासाहेबांच्या अनुयायांनी संविधानाच्या सुरक्षेसाठी कटिबद्ध राहीले पाहिजे. भीम आर्मीची स्थापना दलित, मुस्लिम व बहुजनांवरील अत्याचार थांबविण्यासाठी झाली आहे. संविधानाचे पालन व्हावे व प्रत्येकाला त्याचे हक्क मिळावेत, यासाठी ही संघटना कार्यरत आहे. यापुढे देशातील कोणत्याही भागात बहुजनांवर अत्याचार झाल्यास आपण चोख उत्तर देणार आहोत, असे त्यांनी ठणकावले.

प्रसारमाध्यमं, न्यायपालिका व संसदेत दलित व बहुजनांचे प्रतिनिधीत्व कमी आहे. त्यामुळे या तिन्ही क्षेत्रांना काबीज करा. २०१९ च्या निवडणुकीत आपल्या मताची किंमत ओळखा, पैशांच्या मोबदल्यात आपले अमूल्य मत विकू नका, असे आवाहन त्यांनी केले. सभेच्या व्यासपीठावर संघटनेचे प्रदेशाध्यक्ष कांबळे, सचिव मनीष साठे, शहराध्यक्ष बंटी रामटेके, जिल्हाध्यक्ष सुदाम बोरकर उपस्थित होते. सूत्रसंचालन जगदीश गोवर्धन यांनी केले.

बहुजनांना शासक बनविणार

भीम आर्मीचा उद्देश हा आपल्या लोकांना अर्थात बहुजनांना शासक बनविण्याचा आहे. शासक भीत नसतो. मुस्लिम व दलित यांना भीतीची गरज नाही. देश तुमचा असून घाबरण्याची गरज नाही. भीती दूर करण्यासाठी महापुरुषांचा इतिहास वाचा, त्यांचा संघर्ष आठवा, असे आवाहन त्यांनी केले.

दरवर्षी कोरेगाव भीमा येथे जाणार

कोरेगाव भीमा येथे मला गहिवरून आले. तेथील विजयस्तंभ वंदनीय आहे. ते एक स्फूर्तीस्थानच आहे. त्यामुळे दरवर्षी १ जानेवारीला मी कोरेगाव भीमा येथे येणार असून ज्यांना मला रोखायचे असेल त्यांनी माझी वाट अडवून दाखवावी, असे आव्हान त्यांनी दिले. 
क्या भारत में पत्रकारों के सवालों पर अंकुश नहीं ?

क्या भारत में पत्रकारों के सवालों पर अंकुश नहीं ?


पत्रकार अकोस्टा का प्रेस पास सस्पेंड, CNN ने लोकतंत्र के लिए खतरा बताया, व्हाइट हाउस बोला- अनुचित व्यवहार बर्दाश्त नहीं


संजय पाटील द्वारा : अमरीका में राष्ट्रपति ट्रंप की एक बात की दाद दी जा सकती है कि चुनाव में अनुकूल नतीजे न होने पर भी उन्होंने ख़ुद ट्वीट किया है कि वे प्रेस कांफ्रेंस करने वाले हैं. वहां इस बात की परंपरा भी है.



अमरीका में मध्यावधि चुनाव के नतीजे आए हैं. उन नतीज़ों पर अलग से चर्चा हो सकती है, होनी भी चाहिए लेकिन एक बात की चर्चा हिन्दुस्तान के पत्रकारों के बीच ज़्यादा है. उनके बीच भी है जो भारत की मीडिया को गोदी मीडिया में बदलते हुए देख रहे हैं. अमरीका में राष्ट्रपति ट्रंप की एक बात की दाद दी जा सकती है कि चुनाव में अनुकूल नतीजे न होने पर भी उन्होंने ख़ुद ट्वीट किया है कि वे प्रेस कांफ्रेंस करने वाले हैं. वहां इस बात की परंपरा भी है. अपनी चुनावी रैलियों के लिए रवाना होते हुए या रैलियों से लौटने के बाद हवाई अड्डे पर भी पत्रकार उनसे बिना किसी लाग-लपेट के सवाल पूछ लेते हैं. एक ऐसे ही कवरेज़ में मैंने देखा कि सीएनएन का पत्रकार अपने राष्ट्रपति से पूछ रहा है कि आप जो माइग्रेशन यानी बाहरी लोगों के ख़िलाफ़ भय पैदा कर रहे हैं, उसके प्रमाण क्या हैं. राष्ट्रपति ट्रंप ने जवाब दिया. क्या भारत में मुमकिन है कि कोई पत्रकार प्रधानमंत्री से पूछ दे कि आप जो कह रहे हैं कि भगत सिंह से जेल में मिलने कांग्रेस का कोई नेता नहीं गया, इसका प्रमाण क्या है. क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं. 7 नवंबर को चुनावी नतीजे के बाद व्हाइट हाउस में जब सीएनन के पत्रकार जिम अकोस्टा ने ट्रंप से सवाल किया और अपने सवाल पर टिके रहे तब ट्रंप ने आपा खो दिया, फिर भी अकोस्टा ने अपना सवाल को नहीं छोड़ा. इस वीडियो को दुनिया भर में देखा गया है. भारत में मीडिया पर नज़र रखने वाले और पत्रकार दोनों आहें भर रहे हैं, कुछ आंखें चुरा रहे हैं कि क्या भारत में ऐसा मुमकिन है? क्या यह अच्छा है, क्या हमने ऐसे ही भारत की कल्पना की थी कि प्रधानमंत्री से खुलकर एक सवाल, एक इंटरव्यू कल्पना की बात हो जाए.
भारत में पांच साल होने जा रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने कभी खुलकर प्रेस कांफ्रेंस नहीं की. दो चार इंटरव्यू दिए लेकिन उनकी याद तभी आती है जब आप कहीं पकौड़ा तलते देखते हैं. ट्रंप आपा खोते हुए भी प्रेस के बीच हैं. प्रेस के सामने हैं. पत्रकार एक राष्ट्रपति के हावी होते हुए भी वहीं टिका है. भारत में अगर कोई ऐसा कर दे तो चैनल चलाने वाले सबसे पहले उस पत्रकार को बर्खास्त करना अपना कर्तव्य समझेंगे. उसके दफ्तर लौटने से पहले उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा. अकोस्टा से भी मान्यता छीन ली गई है मगर सीएनन उनके साथ खड़ा है. भारत होता तो घर पहुंचने से पहले निकाल दिया जाता. सीएनन ने बयान जारी कर कहा है कि अकोस्टा पर इंटर्न पर हाथ रखने के आरोप झूठे हैं और संस्थान उसके साथ खड़ा है. सीएनन ने अपने बयान में कहा है कि 'व्हाइट हाउस ने आज के प्रेस कांफ्रेंस में चुनौती देने वाले सवाल पूछने का बदला लेते हुए अकोस्टा की मान्यता रद्द कर दी है. प्रेस सचिव सारा सैंडर्स ने झूठ बोला है. उन्होंने फर्जी आरोप लगाए हैं और ऐसी घटना का ज़िक्र किया है जो हुई ही नहीं. यह अप्रत्याशित फैसला लोकतंत्र के लिए ख़तरा है. देश को इससे बेहतर की उम्मीद थी. जिम अकोस्टा को हमारा पूरा समर्थन है.'
इसलिए हमने आज प्राइम टाइम की शुरुआत इस प्रसंग से की. हम लगातार मीडिया खासकर न्यूज़ चैनलों के गोदी मीडिया और गोदी मीडिया के सांप्रदायिक होते जाने को बर्दाश्त करते जा रहे हैं. हमारे न्यूज़ चैनल दिन रात हिन्दू मुस्लिम डिबेट दिखाते हैं. चार साल से इसी कोशिश में हैं कि टीवी देखने वाला हर दर्शक दंगाई हो जाए. दस साल बाद आपको मेरी हर बात बहुत याद आएगी. क्या भारत में ऐसी व्यवस्था नहीं होनी चाहिए कि सारे पत्रकार हों, प्रधानमंत्री हों और फिर सवाल हो. प्रधानमंत्री मोदी जब लंदन गए थे तब लोगों ने इस बात को भी नोटिस नहीं किया कि उनसे बात करने वाले प्रसून जोशी उन्हीं के द्वारा नियुक्त किए गए हैं. प्रसून जोशी सेंसर बोर्ड के चीफ हैं. जो व्यक्ति जिस सरकार द्वारा नियुक्त हुआ हो वह सवाल क्या करेगा. मगर प्रसून जोशी न निराश नहीं किया. उन्होंने वही सवाल किया जो प्रधानमंत्री के इंटरव्यू के लिए चुने हुए पत्रकार करते. वही ड्रीम क्वेश्चन. प्रधानमंत्री आप सोते कब हैं. इतनी ऊर्जा कहां से आती है.
आज अगर प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस कर रहे होते तो नोटबंदी और रफाल को लेकर कई सवाल होते. रोज़गार को लेकर भी एकाध सवाल आ ही जाता और फिर सीबीआई और आरबीआई को लेकर पत्रकार इस तरह से पूछ ही लेते हैं कि आप इन विवादों को कैसे देखते हैंटबंदी 8 नवंबर को लागू हुई थी, आज 8 नवंबर है. दो साल हो गए. आज ऐसा कोई बयान नहीं आया है जबकि मोदी सरकार इस दिन को एंटी ब्लैक डे के रूप में मनाती है. इतने महत्वपूर्ण डे यानी दिवस पर प्रधानमंत्री का एक ट्वीट तक नहीं आया. फैज़ाबाद ज़िले का नाम अयोध्या करने पर ट्वीट नहीं आया लेकिन नोटबंदी पर तो आ ही सकता था. सवाल है प्रधानमंत्री नोटबंदी पर क्यों नहीं बोल रहे हैं.
2016 की तरह अब उनके भाषणों से नोटबंदी करीब करीब गायब है और माल्या, चौकसी और नीरव भी देश से गायब हैं. प्रधानमंत्री ने नोटबंदी छोड़ दी, माल्या और चौकसी ने देश ही छोड़ दिया. रेल मंत्री पीयूष गोयल ने भी नोटबंदी के असर की तारीफ करते हुए ट्वीट किया है और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी ब्लॉग लिखा है. जेटली ने लिखा है कि 'सरकार ने सबसे पहले भारत के बाहर कालाधन को टारगेट किया. संपत्ति जमाखोरों से कहा गया कि जुर्माना टैक्स देकर काला धन वापस लाएं. जो नहीं कर पाएं उन पर ब्लैक मनी एक्ट के तहत कार्रवाई हो रही है. कार्रवाई करने से बाहर के खाते और संपत्तियों के ब्यौरा सरकार के पास आ गए हैं.'
कितनी संपत्ति विदेशों में जमा थी, उनमें से कितना काला धन आया, कितना पैसा टैक्स के रूप में मिला, यह सब डिटेल ब्लॉग में नहीं है. वित्त मत्री लिखते हैं कि जनधन के कारण कमज़ोर लोग औपचारिक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बने. मगर जनधन का अभियान तो नोटबंदी से पहले का है. उसका नोटबंदी से क्या लेना देना. उन्हें यह बताना चाहिए था कि जनधन के कितने खाते इस वक्त निष्क्रिय हैं क्योंकि अप्रैल महीने में विश्व बैंक की ग्लोबल फिनडेक्स रिपोर्ट आई थी, कई अखबारों में छपी है, इसके अनुसार 'भारत में पिछले साल बैंकों के 48 फीसदी खाते निष्क्रिय रहे, मतलब 12 महीने में न किसी ने पैसे डाले, न किसी ने निकाले. निष्क्रिय खातों के बारे में भारत दुनिया में नंबर एक है.'
नोटबंदी के दौरान जनधन खातों में कालाधन जमा होने की चर्चा हुई थी. उनसे कितना पैसा पकड़ाया है, ब्लॉग में संदिग्ध खातों की संख्या का ज़िक्र तो है, मगर बाकी डिटेल नहीं है. एनडीटीवी की साइट पर 18 सितंबर 2018 की एक खबर है. मुख्य सूचना आयुक्त ने भारतीय रिज़र्व बैंक को आदेश दिया था कि अलग-अलग बैंकों के जनधन खाते में नोटबंदी के समय के पुराने नोट कितने जमा हुए, उसके बारे में बताएं. इस बारे में हमारे पास अंतिम और ताज़ा सूचना नहीं है. पिछले साल के ब्लॉग में वित्त मंत्री ने ज़रूर कहा था कि बैंकों ने जो संदिग्ध खातों की संख्या रिपोर्ट की है, 2016-17 में 3,61,314 हो गई है. वित्तीय संस्थाओं और सेबी ने भी 1,11,789 संदिग्ध खातों की रिपोर्टिंग की है. इस साल के ब्लॉग में जेटली ने संदिग्ध खातों की संख्या 17.42 लाख बताई है.
काश यह भी बता देते कि इन संदिग्ध खातों में कितना पैसा जमा था, कितना पैसा टैक्स के रूप में आया और कौन-कौन लोग थे जिन्होंने इनमें पैसे जमा कराए. नोटबंदी के बाद एक नई चीज़ आई. बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस न होने पर फीस लेना शुरू कर दिया. लाइव मिट की 5 अगस्त की रिपोर्ट आप देख सकते हैं. न्यूनतम बैलेंस के नाम पर बैंकों ने अपने खाताधारकों से 5000 करोड़ कमा लिए. एसबीआई ने सबसे अधिक कमाया. अगर बैंकों के पास कैश का फ्लो बढ़ गया तो फिर उन्हें यह कदम उठाने की ज़रूरत क्यों पड़ी. वित्त मंत्री ने अपने ब्लॉग में दावा तो यही किया है. जेटली लिखते हैं, 'जब कैश बाजार में घूमता है तो तो उसकी मिलकियत रिकॉर्ड में पता नहीं लगती, वह एनोनिमस होता है. जब बैंक में जाता है तो एकदम पता चल जाता है कि किसके खाते में गया है, उसका मालिक कौन है, उसको हिसाब किताब देना पड़ेगा. लगभग 18 लाख लोग जिन्होंने बड़ी रकम लगभग करोड़ों में या कई लाखों में बैंकों में डाली उनको आईडेंटिफाई किया गया, उनके डिपॉजिट उनकी आमदनी की तुलना में बहुत अधिक है तो आज उनको जवाबदेही देनी पड़ रही है और टैक्स देकर छुटकारा पा रहे हैं.'
वित्त मंत्री अपने ब्लॉग में भी दावा करते हैं कि इसके कारण बैंक में कैश ज्यादा आया जिससे कर्ज़ देने की उनकी क्षमता काफी बढ़ी. क्या वाकई बैंकों के कैश की क्षमता बढ़ी तो फिर यह क्यों कहा जा रहा है कि रिज़र्व बैंक के सरप्लस रिज़र्व पर इसलिए नज़र है क्योंकि बैंकों के पास कर्ज़ देने के लिए लिक्विडिटी यानी कैश नहीं है. फिर क्यों सबसे बड़ी गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था आईएलएफएस डिफॉल्ट कर रही है, अपना लोन नहीं चुका रही है. फिर क्यों वित्त मंत्री बैंकों को पैसे दे रहे हैं क्योंकि वे फिर से खड़े हो सकें. इसकी जानकारी उनके ब्लॉग में नहीं है. नोटबंदी के बाद रिज़र्व बैंक और सरकार के बीच साढ़े तीन करोड़ के सरप्ल्स रिज़र्व को लेकर तनातनी क्यों है.
एक साल पहले वित्त मंत्री जेटली ने ब्लॉग में लिखा था कि नोटबंदी का मकसद था चलन में करेंसी की मात्रा को कम करना क्योंकि कैश की मात्रा बढ़ने से काला धन बढ़ जाता है. इस साल कहते हैं कि बगैर जाने आलोचना की जाती है कि सारा कैश सिस्टम में आ गया. करेंसी ज़ब्त करना नोटबंदी का मकसद नहीं था. औपचारिक अर्थव्यवस्था में आना और टैक्स देने पर मजबूर करना इसका मकसद था. कैश से डिजिटल की तरह भारत को ले जाने के लिए सिस्टम को झकझोरना ज़रूरी था.
करेंसी ज़ब्त करना मकसद नहीं था तो फिर करेंसी को अमान्य घोषित क्यों किया गया. डिजिटल की तरफ जाना मकसद था तो फिर आज पहले से कहीं ज़्यादा कैश चलन में क्यों है. क्या रुपे कार्ड, भीम एप के प्रसार के लिए नोटबंदी ही एकमात्र रास्ता थी. क्या दुनिया में डिजिटल पेमेंट और क्रेडिट कार्ड वहीं फैला जहां नोटबंदी आई. पिछले साल 8 नवंबर के अपने ब्लॉग में अरुण जेटली ने लिखा था कि 8 नवंबर 2016 को उस रोज़ सभी प्रकार की 17.77 लाख करोड़ मुद्रा चलन में थी. अब 2016 की तुलना में 3.89 लाख करोड़ की करेंसी चलन से कम हो गई है.'
2017 के ब्लॉग में वित्त मंत्री बता रहे हैं कि जितनी करेंसी चलन में थी उसकी तुलना में करीब चार लाख करोड़ की कमी आ गई. अब के आंकड़े बता रहे हैं कि करीब चार लाख करोड़ करेंसी ज़्यादा चलन में है. 10 जून 2018 की रिपोर्ट है बिजनेस लाइन की जिसमें कहा गया है कि 'लोगों के पास जो कैश है और बैंकों में जो कैश है दोनों की मात्रा नोटबंदी की तुलना में बहुत ज़्यादा हो गई है. 1 जून 2018 को चलन में मुद्रा की संख्या 19.3 लाख करोड़ थी जो नोटबंदी के 15.47 लाख करोड़ से ज्यादा है. नोटबंदी के समय की तुलना में करीब चार लाख करोड़ ज्‍यादा कैश सर्कुलेशन में है.
राहुल गांधी ने भी एक बयान जारी किया है. मनमोहन सिंह ने भी बयान जारी किया है. राहुल गांधी ने कहा है कि नोटबंदी एक त्रासदी थी. भारत ने अतीत में कई मुश्किलें देखी हैं. कई बार बाहरी ताकतों ने भारत को नुकसान पहुंचाया है. लेकिन हमारी त्रासदी के इतिहास में नोटबंदी का स्थान विशिष्ट है क्योंकि यह भीतर से पहुंचाया गया नुकसान था, आत्मघाती था. जिसने लाखों लोगों की ज़िंदगी तबाह कर दी. कई छोटे कारोबारियों का बिजनेस बर्बाद कर दिया.
कुछ न्यूज़ एंकर तो यह दावा कर रहे थे कि 2000 के नोट में चिप लगा है, नकली नोट कोई बना नहीं सकता और इसे छिपाने पर चिप की मदद से पकड़ लिया जाएगा. एंकर बता रही थीं कि नोट से सीधा सिग्नल इंकम टैक्स डिपार्टमेंट में चला जाएगा. यह कोई सामान्य गलती नहीं थी जो बोलते हुए या नज़र से चूक जाने के कारण हुई थी. रही बात जाली नोटों की मात्रा की तो हम आपको सिर्फ इतना बता दे रहे हैं कि 2017-18 में 2000 के नए नोटों का जाली नोट 2710 प्रतिशत अधिक हो गया, 500 के नए नोट का जाली रूप मात्र 4871 प्रतिशत हो गया है. यह रिज़र्व बैक का कहना है जिसे 29 अगस्त को हिन्दू ने छापा है. वित्त मंत्री के ब्लॉग में ये नहीं था. वित्त मंत्री ने यह भी बताया है कि कैसे जीएसटी का कलेक्शन बढ़ा है, इस पर भी अलग अलग दावे हैं लेकिन क्या जीएसटी नोटबंदी के बाद का अगला चरण था या नोटबंदी से अलग एक प्रक्रिया है जो तब भी लागू होती अगर नोटबंदी न होती. कहीं ऐसा तो नहीं कि वित्त मंत्री सरकार के अलग अलग कार्यों को नोटबंदी से मिला दे रहे हैं ताकि इसका फायदा बड़ा दिखे.
दलितों के बीच चंद्रशेखर के बढ़ते प्रभाव से मायावती परेशान हैं :  संजय पाटील

दलितों के बीच चंद्रशेखर के बढ़ते प्रभाव से मायावती परेशान हैं : संजय पाटील

चंद्रेशखर आजाद रावण

संजय पाटील  द्वारा : बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती का भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर को बीजेपी का एजेंट बताना और फिर चंद्रशेखर का मायावती पर पलटवार करना एक नई राजनीतिक बहस का मुद्दा बन गया है.
राजनीतिक जगत में इसे दो तरीक़े से देखा जा रहा है- दलितों के बीच चंद्रशेखर के बढ़ते प्रभाव से मायावती का परेशान होना और चंद्रशेखर का समय से पहले बड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाल लेना.
भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर दो साल पहले उस वक़्त चर्चा में आए थे जब सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जातीय हिंसा हुई थी. उस समय उनका संगठन भीम आर्मी और उसका स्लोगन 'द ग्रेट चमार' भी ख़बरों में छाया रहा.
हिंसा के आरोप में चंद्रशेखर समेत भीम आर्मी के कई सदस्यों को गिरफ़्तार किया गया था और उस वक़्त ये मामला भी काफ़ी सुर्ख़ियों में रहा कि बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने दलितों के साथ हुई हिंसा पर संवेदना जताने में काफ़ी देर की. बहुजन समाज पार्टी ने इसके ख़िलाफ़ कोई आंदोलन भी नहीं किया.
मायावती शब्बीरपुर गईं ज़रूर लेकिन हिंसा के कई दिन बाद. उस समय भी उन्होंने दलित समुदाय को भीम आर्मी जैसे संगठनों से सावधान रहने की हिदायत दी थी. मायावती ने उस वक़्त भी भीम आर्मी और चंद्रशेखर को बीजेपी का 'प्रॉडक्ट' बताया था.
उसके बाद चंद्रशेखर जब कभी भी सुर्खियों में रहे, मायावती ने या तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और दी भी तो चंद्रशेखर को अपना प्रतिद्वंद्वी समझकर. हालांकि जेल से छूटकर आने के बाद चंद्रशेखर ने सीधे तौर पर कहा था कि वो बहुजन समाज पार्टी और उसकी नेता मायावती के समर्थन में हैं और उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं.
भीम आर्मी ख़ुद को एक सामाजिक संगठन के तौर पर पेश करता है और उसके प्रमुख चंद्रशेखर कई बार ख़ुद कह चुके हैं कि उनका राजनीति में आने का अभी कोई मक़सद नहीं है.
लेकिन वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने की उनकी घोषणा से ये तो साफ़ हो गया कि भीम आर्मी एक राजनीतिक दल में अभी भले न तब्दील हो लेकिन चंद्रशेखर की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से इनकार नहीं किया जा सकता.
जानकारों के मुताबिक़, चंद्रशेखर के राजनीति में आने से सबसे ज़्यादा ख़तरा बहुजन समाज पार्टी को दिखता रहा है क्योंकि जिस दलित समुदाय को बीएसपी अपना मज़बूत वोट बैंक मानती है, चंद्रशेखर और उनकी भीम आर्मी भी उसी समुदाय के हित में काम करते हैं.
चंद्रशेखर की वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा ने बीएसपी नेता मायावती को हैरान कर दिया और उन्होंने तत्काल बयान जारी करके चंद्रशेखर पर बीजेपी का एजेंट होने का आरोप मढ़ दिया.
हालांकि चंद्रशेखर ने भी ट्वीट के ज़रिए मायावती के बयान को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है लेकिन जानकारों का मानना है कि मायावती ने इस मामले में जल्दबाज़ी कर दी है.

Monday, 1 April 2019

 Subrahmanyam Saderla : Dalit Scholar’s ‘Curse’ Which Never Leaves : Assistant Professor, Department of Aerospace Engineering

Subrahmanyam Saderla : Dalit Scholar’s ‘Curse’ Which Never Leaves : Assistant Professor, Department of Aerospace Engineering

























Sanjay Patil : New Delhi: Dr Subrahmanyam Saderla, a Dalit academic from IIT-Kanpur says he has a document saved in his phone.  The document, an email titled “Curse Mail”, which was sent by four senior faculty members on February 1 last year, starts with this singeing line - "Every ten years an incident occurs which shakes the foundation of academics at IITK. The curse has struck again!”In the email, Saderla’s colleagues not only questioned his recruitment to the university but also vilified the scholar, calling him an “unsuitable” candidate. “Ironically, it appears that a candidate with an IITK PhD CPI of 10 and good research publications was rejected. Are we living in an inverted world? How then did the candidate slip under the radar? Let us assume that the Departmental Faculty Affairs Committee slipped but what was the Institute Faculty Affairs Committee doing?” the email reads.The email’s authors denounced Saderla and described him as an “unsuitable, uninspiring, unfortunate candidate”, who “came by wrong means”, and was “mentally unfit to take the job.”

The email prompted Saderla to lodge an official harassment complaint following which a committee was constituted.  The committee headed by Professor Vinay K Pathak, Vice Chancellor Dr APJ Abdul Kalam Technical University recommended that the “management should take suitable action keeping in view SC/ST Prevention of Atrocities Act 1989 and its Amendment Act 2015.”

“The issue has been created mainly by faculty members whose acts are against the organization and in particular against Dr Saderla who has been harassed by their acts and prima facie evidence has been found,” the committee had observed at the time. But Saderla didn’t stop there. He took the complaint to the National Commission for Scheduled Castes (NCSC). Following this, a high court judge found the four teachers guilty of flouting IIT-K’s conduct rule and the SC/ST Preventions Atrocities Act.

A year on, Saderla celebrates the anniversary of the email with a singeing response to his colleagues. His email titled “One Year of Curse” reads, “Is it a sin to get appointed through a special recruitment drive?”.

This communication now assumes importance, as IIT-K Senate has put forth a recommendation to the Board of Governors that Saderla’s PhD dissertation be cancelled over an anonymous complaint against him.
The charges of plagiarism were made through an anonymous email, which was sent across to several faculty members on October 15 2018, just two months after the four professors were found guilty of harrassment. The Academic Ethics Cell of IIT, however, found no reason to revoke the thesis since “there are no allegations with regards to scholars own research work, including detailed experiments table’s figures and the conclusions drawn from them.”

The Ethics Report also pointed out that the institute does not have any policy of looking into the charges made anonymously. The Board of Governors is likely to convene on the matter soon.“I have faith in the Board of Governors and that they will act without any prejudice. The Board has 194 members – 58 are in my favor and 42 are opposing it. The charges of plagiarism were made in an anonymous email – ideally the person whose work has been plagiarized should be complaining – then why a nameless email?” Saderla told 

Interestingly, according to Saderla, the plagiarism charges are trivial. “The Ethics Cell has said that there is no need to revoke my thesis – there were similarities in introduction and appendix. The charges were made on equations of motion. But that is something Newton derived, and no one can take it away from him.”
He said that he is only being probed for speaking up against harassment.


Always Under The Scanner


Hailing from Andhra Pradesh, Saderla’s tryst with humiliation started as far back as the selection process. The Inquiry Report by the High Court judge mentions that during the course of the recruitment process Dr Subrahmanyam Saderla was invited for a seminar in which he was grilled over his presentation. One of the faculty members questioned Saderla’s inferences saying that if he was right, then he (the faculty member) had been teaching the wrong lesson for the past ten years. According to the inquiry report, “Saderla felt humiliated and insulted.”
His hiring was followed by several meetings with faculty members to discuss the “possible procedural lapses in the recent hiring in the Department of Aerospace Engineering.”

Saderla’s research, which focuses on unmanned aerial vehicles, is said to be a step ahead from his senior’s work on low level angles as it also provides experimental data through aerodynamic modelling. Saderla was hurt to know about this follow-up action to his recruitment and contacted the director to make provisions so that no other faculty has to face these situations. Needless to say, the ordeal left Saderla traumatised.

His wife, Srawanthi Satuluri, also complained to the authorities about harassment and discrimination. The Inquiry Report pointed out that she was concerned about how her husband was under great duress. “We come from the lower middle-class background and are second generation literates. We want to pave the path for the fellow future generations by being iconic examples,” she said. 
Saderla didn’t want to lose the battle in his own institute and took the matter to the NCSC. The director was grilled and was told to lodge an FIR. One of the accused professors Ishan Sharma filed a writ petition countering the report’s findings in the High Court which stayed the FIR.


"Why me?”


Saderla, who is one of the only four SC/ST category teachers among the 400 faculty members, was lauded by the other faculty members from marginalized background for his bravery. “When Rohith Vemula case happened in the central university of Hyderabad, I told myself that it might be just one case of discrimination but I was wrong,” Saderla recalls. Born to an upper caste mother and a Dalit father, Saderla said that he never faced discrimination while growing up. “I never faced it. This is the first time I am seeing such discrimination. The selection committee was happy with my hiring – yet this happened.”

In the email “One year of curse” he writes, “We have grown up hearing the stories from our parents that there was a time when people were labelled as curse on every occasion of an unsought encounter. But never understood the exact crux of that act in spite of our parents being direct victims of such hostile experiences. The events that I have gone through make me question – why me? Why only me?” The IIT-K administration Registrar KK Tiwari, who said that the Board of Governors will take a final call on the recommendations put forth by the institute’s Senate.