दो वक्त की रोटी के लिए कड़ी मशक्कत
संजय पाटील : (Agency )सिसकती आंखें, जुबान पर दर्द, गलियों में सन्नाटा और हड्डी में तब्दील होतीं वो खुद...ये उन गलियों के पते हैं, जहां हर ख्वाहिशमंद रात के अंधियारे में दबे पांव शरीर का भूख मिटाने जाता है। इसी भूख से समाज के इन गुमनाम चेहरों की पेट की भूख भी मिटती है। कोलकाता का सोनागाछी इलाका, मुंबई का कमाठीपुरा, दिल्ली में जीबी रोड, नागपुर की तंग गलियां...ये वही पते हैं जो कोरोना काल से पहले गुलजार हुआ करते थे। कोरोना जब लगभग पूरी दुनिया को अपनी जद में ले चुका है और भारत में लॉकडाउन की वजह से जिंदगी अब ठहर सी गई है। इन गलियों में अब चारों तरफ अजीब सन्नाटा है। हर पदचाप शरीर में सिहरन पैदा करता है। हर कोई अपने घरों में कैद है। जेहन में कई सवाल हैं। इन सवालों के समंदर में एक बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर कैसे इन सेक्स वर्कर्स की जिंदगी कट रही है?
नागपुर का यह इलाकों कभी ग्राहकों से भरा रहता था। जिंदगी गुलजार थी और हर ओर हलचल दिखती थी। कभी-कभी पुलिसवाले की दस्तक डर जरूर पैदा करती थी। अब वहां अजीब खामोशी है। अब इन सेक्स वर्कर्स के खाने के लाले पड़ गए हैं। किसी तरह दो वक्त की रोटी उन्हें नसीब हो रही है। एक सेक्स वर्कर बताती हैं, 'हमारे पास खाने को कुछ नहीं है। हमलोग अब उनलोगों की दया पर जी रहे हैं, जो जरूरतमंद लोगों को खाना बांटते हैं।'
वेश्यावृत्ति को दुनिया का सबसे पुराना पेशा कहते हैं। ऎसा पेशा जो कभी खत्म नहीं हो सकता। वेश्यावृत्ति यानी जिस्म का धंधा अब मोबाइल हो गया है। वक्त के साथ इस धंधे को भी पहिए लग गये हैं। बाजार की जरूरत ने इसे हर जगह पहुंचा दिया है। बड़े-बड़े होटलों, आलीशान रिजॉर्ट्स और पुराने कोठों पर पर इसकी पहुंच तो पहले ही थी लेकिन अब ये धंधा पहुंच गया है सड़कों पर। हालांकि यह धंधा महिलाओं की दैहिक स्वातंत्रता पर कलंक है। 1956 में पीटा कानून के तहत वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता दी गई थी पर 1986 में इसमें संशोधन करके कई शर्तें जोड़ी गईं। शर्त के मुताबिक सार्वजनिक सेक्स को अपराध माना गया और यहां तक कि इसमें सजा का प्रावधान भी रखा गया।
दूसरों की दया पर जिंदगी
कमाठीपुरा की तंग गलियां भी अपनी बेबसी साफ बयां करती हैं। कोरोना ने मुंबई के कई परिवारों की खुशियां छीन ली और कई पर उसका ग्रहण साफ दिख रहा है। इसका असर सेक्स वर्कर्स के चेहरों पर भी साफ दिखता है। एक सेक्स वर्कर दबी जुबान में कहती हैं, 'हमलोगों को राशन नहीं मिल रहा है। हम वही खाते हैं, जो एनजीओ देते हैं।' यह तकलीफ बताती है कि आखिर कब इन उदास चेहरों पर खुशियां लौटेंगी?
सोनागाछी का दर्द
एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट इलाके उत्तर कोलकाता के सोनागाछी में भी सेक्स वर्कर्स को पता नहीं कि आखिर आगे क्या होगा? वक्त किधर करवट लेगा? यहां एक लाख से ज्यादा सेक्स वर्कर्स के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। उन्हें भुखमरी का डर सता रहा है, क्योंकि कोरोना वायरस की वजह से धंधा बंद पड़ा है। पश्चिम बंगाल की सेक्स वर्कर्स का संगठन दरबार महिला समन्वय समिति की इस मसले पर सरकार से बातचीत भी हो रही है। अब संगठन का कहना है कि उन्हें असंगठित क्षेत्र के कामगारों का तमगा दिया जाए ताकि उन्हें मुफ्त राशन मिल सके।
धंधा मंदा, किराए तक के पैसे नहीं
सोनागाछी की 30,000 से ज्यादा सेक्स वर्कर्स किराए के मकान में रहती हैं और उनका किराया हर महीने पांच से छह हजार रुपये तक होता है। ऐसे में सवाल उठता है कि यदि इसी तरह धंधा मंदा रहा तो फिर वे किराए कहां से चुकाएंगी? ऐसी बात नहीं है कि ये सेक्स वर्कर्स चुपचाप इस दर्द को झेल रही हैं। एनजीओ के जरिए वह सरकार से मदद की आस भी लगाए बैठी हैं। लेकिन बड़ा सवाल, क्या सरकार इन पर दया दिखाएगी?
जीबी रोड की जिंदगी और चुभते सवाल
दिल्ली के रेडलाइट एरिया जीबी रोड की सेक्स वर्कर्स इस मामले में कुछ खुशनसीब हैं। इस इलाके में 70 से अधिक कोठे हैं। आपदा की इस घड़ी में दिल्ली पुलिस उनके लिए किसी खुदा से कम नहीं है। यहां रहने वाली सेक्स वर्कर्स के लिए दिल्ली पुलिस रोजाना खाना पहुंचाती है। पास ही एक गुरुद्वारा है, जो इनकी मदद करता है। पर सभी सेक्स वर्कर्स की जिंदगी इतनी खुशमय नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक इनकी जिंदगी में लॉकडाउन रहेगा? क्या वो खुशियां उनकी जिंदगी में फिर दस्तक देगी ?
अब इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि देश में ऐसी कई गलियां हैं जहां दिन ढलते ही घुंघरुओं की झनकार इस कदर झनकती है कि बाकी के सारे शोर दब जाते हैं। तो आईए आज आपको भारत के 10 ऐसे रेड लाइट एरिया के बारे में बताते हैं जिनका नाम एशिया में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लिया जाता है।
दिल्ली का जीबी रोड दिल्ली स्थित जीबी रोड का पूरा नाम गारस्टिन बास्टिन रोड है। यह दिल्ली का सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। हालांकि इसका नाम सन् 1965 में बदल कर स्वामी श्रद्धानंद मार्ग कर दिया गया। इस इलाके का भी अपना इतिहास है। बताया जाता है कि यहां मुगलकाल में कुल पांच रेडलाइट एरिया यानी कोठे हुआ करते थे। अंग्रेजों के समय इन पांचों क्षेत्रों को एक साथ कर दिया गया और उसी समय इसका नाम जीबी रोड पड़ा। जानकारों के मुताबिक देहव्यापार का यहां सबसे बड़ा कारोबार होता है, और यहां नेपाल और बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लड़कियों की तस्करी करके यहां को कोठों पर लाया जाता है। वर्तमान में एक ही कमरे में कई केबिन बनें हैं, जहां एक साथ कई ग्राहकों को सेवा दी जाती है।
कोलकाता का सोनागाछी देश के पूर्वी भाग के सबसे बडे महानगर सोनागाछी को एशिया का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया माना जाता है। अनुमान के मुताबिक यहां कई बहुमंजिला इमारते हैं, जहां करीब 11 हजार वेश्याएं देह व्यापार में लिप्त हैं। सोनागाछी की वेश्याओं का है लाइसेंस उत्तरी कोलकाता के शोभा बाजार के समीप स्थित चित्तरंजन एवेन्यू में स्थित इलाके में वेश्यावृत्ति से जुड़ी महिलाओं को बाकायदा लाइसेंस दिया गया है। यहां इस व्यापार को कई तरह के समूह चलाते हैं, जिन्हें एक तरह से गैंग कहा जाता है। एक अनुमान के मुताबिक इस स्लम में 18 साल से कम उम्र की करीब 12 हजार लड़कियां सेक्स व्यापार में शामिल हैं।
मुंबई का कमाठीपुरा ये भारत का दूसरा सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया है। यहां कई यौनकर्मी रहते हैं जिनकी हालत बद से बदतर है। यहां छोटी सी बीड़ी बनाने की इंडस्ट्री भी है जिन्हें महिलायें चलाती हैं। 80 के दशक में हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम जैसे गैंगस्टर यहां आया करते थे। 1880 में यह क्षेत्र अंग्रेजों के लिए ऐशगाह बन गया था।
पुणे का बुधवारपेट पुणे के बुधवारपेट को भारत का तीसरा सबसे बड़ा रेड लाइट एरिया माना जाता है। यहां करीब 5000 यौनकर्मी काम करते हैं। इस इलाके में किताबों और इलेक्ट्रॉनिक सामान का भी कारोबार होता है।
ग्वालियर का रेशमपुरा मध्य प्रदेश में एक तरह से सिंधिया परिवार की सरजमीं पर ग्वालियर में रेशमपुरा एक बड़ा रेडलाइट इलाका है। यहां देह व्यापार के लिए विदेशी लड़कियों के साथ मॉडल्स, कॉलेज गर्ल्स भी हैं। यहां एक तरह से कॉलेज गर्ल्स के लिए बाकायादा ऑफिस खोले जाने लगे हैं। इंटरनेट और मोबाइल पर आने वाली सूचनाओं के आधार पर कॉलगर्ल्स की बुकिंग होती है। कॉलगर्ल्स को ठेके पर या फिर वेतन पर रखा जाता हैं।
इलाहाबाद का मीरगंज इलाहाबाद का ये इलाका गैर-कानूनी वैश्यावृत्ति के लिए जाना जाता है। यहां जाना भी खतरे से खाली नहीं है। मीरगंज रेडलाइट ऐरिया तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है। हर घर के बाहर सज-धज कर तैयार महिलाएं हर आने जाने वाले को अपने पास बुलाती नजर आ जाएंगी। जानकारी के अनुसार यहां पर पहले कोठे चलते थे और यहां पुराने जमीदार मुजरा देखने आते थे।
वाराणसी का शिवदासपुर एरिया इस इलाके में वैश्यावृत्ति प्राचीनकाल से चली आ रही है। घाटों के शहर, वाराणसी के एक अलग कोने में ये इलाका है जहां ये धंधा चलता है। शिवदासपुर वाराणसी रेलवे स्टेशन से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर स्थित इलाका यहां के रेडलाइट इलाके के रूप में फेमस है। यह एक तरह से यूपी का सबसे बड़ा रेडलाइट इलाका है। यहां की तंग गलियों में घर के बाहर खड़ी लड़कियां ग्राहकों को उसी पारंपरिक तरीके से रिझाती नजर आती हैं, जैसे एक समय यहां चलने वाले कोठे में पारंपरिक रूप से चलन में था।
नागपुर का गंगा-जमुना महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में इतवारी इलाके में गंगा-जमुना इलाका है, जहां वेश्यावृत्ति चलती है। यह इलाका देह व्यापार के लिए पूरे नागपुर में फेमस है। खास बात यह है कि यह कई तरह के अपराधों का भी अड्डा है।
मुजफ्फरपुर का चतुरभुज स्थान यहां कई सालों से मंदिर और कोठे आस-पास हैं. इस इलाके के बारे में जान कर लगता है कि हमारे पूर्वजों के समय कुछ तो अलग सामाजिक मान्यताएं रही होंगी। बताया जाता है कि उत्तरी बिहार का यह सबसे बड़ा रेडलाइट इलाका है।
मेरठ का कबाड़ी बाजार पश्चिमी यूपी के बड़े शहर मेरठ में स्थित कबाड़ी बाजार बहुत ही पुराना रेड लाइट एरिया है। यहां अंग्रेजों के जमाने से देहव्यापार किया जाता है। यहां देह व्यापार के धंधे मे अधिकांश नेपाली लड़कियां ही हैं।
देहविक्रेत्यांवर उपासमारीचे संकट : नागपुर
शहरातील 'गंगा जमुना' भागात देहविक्री करणाऱ्या महिलांवर लॉकडाउनमुळे उपासमारीची वेळ आली आहे. या महिलांना पोलिस प्रशासन आणि परिसरातील सामाजिक संघटना त्यांच्यापरीने मदत करीत आहेत. पण, या महिलांची संख्याही मोठी असल्याने त्यांना मदतीची गरज आहे.
देशाच्या विविध भागांमधील महिला येथे देहविक्रीसाठी वास्तव्याला असतात. काहींची येथे स्वत:ची घरे आहेत, तर काही किरायाने राहतात. काही महिला अन्यत्र राहून येथे फक्त व्यवसायासाठी येतात. ज्या महिला किरायाने राहतात, त्यांना रोजचे भाडे रोजच द्यावे लागते. मात्र २२ मार्चपासून येथील व्यवसाय पूर्ण बंद आहे. कामच बंद असल्याने जिथे रोजच्या उदरनिर्वाहाचाच प्रश्न निर्माण झाला, तिथे भाडे कसे चुकते करायचे, असा प्रश्न त्यांना पडला होता. मात्र, लकडगंजचे पोलिस निरीक्षक नरेंद्र हिवरे यांनी येथील घरमालकांना या महिन्यात भाडे न घेण्याचे आवाहन केल्याने सध्या भाड्याचे संकट टळले असल्याचे या महिलांसाठी कार्य करणाऱ्या रेडक्रॉस संघटनेच्या अल्का थुल यांनी सांगितले.
देशाच्या विविध भागांमधील जवळपास अडीच हजार महिला येथे आहेत. मार्च महिन्याच्या सुरुवातीला अनेक महिला नवरात्री उत्सवासाठी आपापल्या राज्यांत गेल्या होत्या. मात्र, मध्येच लॉकडाऊन घोषित झाला आणि त्या तिकडेच अडकल्या. तरीही आजघडीस १८०० ते २ हजार महिला या ठिकाणी आहेत. गणिका महिला शक्ती संघटनाही त्यांच्या मदतीसाठी कार्यरत आहे.
हा परिसर ज्या पोलिस स्टेशन अंतर्गत येतो, त्या लकडगंज पोलिस ठण्याचे निरीक्षक नरेंद्र हिवरे यांच्याशी संपर्क साधला असता, त्यांनीही मानवतेच्या भावनेतून आम्हाला जे- जे शक्य आहे, ते आम्ही या महिलांसाठी करीत आहोत. पोलिस प्रशासनासहच आ. कृष्णा खोपडे तसेच या परिसरातील अनेक सामाजिक संघटनाही मदतीसाठी पुढे येत असल्याचे त्यांनी सांगितले.
नागपुर: 'सर्वे करने जाते हैं तो लोग देते हैं गालियां, मारते हैं पत्थर'
नागपुर : देश में कोरोना वायरस का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इस खतरे से निपटने के लिए 'कर्मवीर' सबसे ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। वहीं देश के कई हिस्सों से इन कर्मवीरों से बदसलूकी की घटनाएं भी लगातार सामने आ रही हैं।
ताजा मामला महाराष्ट्र के नागपुर का है, जहां आशा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जब वे लोगों को जागरूक करने जाती हैं तो उन्हें न सिर्फ गंदी-गंदी गालियां दी जाती हैं, बल्कि उन्हें पत्थरों से भी मारा जाता है। आशा कार्यकर्ता ऊषा ठाकुर ने कहा, 'जब हम सर्वे करने जाते हैं तो लोग हमें पत्थर मारते हैं और गालियां देते हैं कि आप हमारे घर क्यों आ रही हैं सवाल करने। हम उन्हें समझाते हैं कि हम उनके हित के लिए काम कर रहे हैं। आप हमें सिर्फ जानकारी दीजिए, उसके अलावा हम आपके घर से कुछ नहीं मांगते।'
आपको बता दें कि आशा कार्यकर्ताओं को कोरोना रेड ज़ोन एरिया में सर्वेक्षण करने और साथ ही लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक करने का काम सौंपा गया है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में अबतक 5218 कोरोना पॉजिटिव केस सामने आ चुके हैं। इनमें से 722 लोग ठीक हो चुके हैं। वहीं राज्य में अबतक 251 लोगों की मौत हो चुकी है।
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