Saturday 23 May 2020

अयोध्या में मिले पुरावशेष सम्राट अशोक के समय के हैं अंश ; संजय पाटील

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राम मंदिर ट्रस्ट की ओर से जारी तस्वीर

संजय पाटील : नागपूर प्रेस मीडिया  : 24 मे 2020 अयोध्या : अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समतलीकरण के दौरान मिली मूर्तियों से विवाद पैदा हो गया है। मूर्तियों के अवशेष मिलने पर बयानबाजी के बीच माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर हैशटैग बौद्धस्थल अयोध्या ट्रेंड कर रहा है। यहां कुछ लोग दावा कर रहे हैं कि समतलीकरण के दौरान जो अवशेष मिले हैं वह सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान की है। कुछ ट्विटर यूजर ने यूनेस्को से रामजन्मभूमि परिसर की निष्पक्ष खुदाई की मांग की है।

लोगों का कहना है कि समतलीकरण के दौरान खुदाई में जो अवशेष मिले हैं वह शिवलिंग नहीं बल्कि बौद्ध स्तंभ हैं। इसी के साथ लोग ट्विटर पर बौद्ध धर्म की कलाकृतियां और समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष की तस्वीर साझा कर तुलना कर रहे हैं। इससे पहले ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव खालिक अहमद खान ने दावा किया था कि जो अवशेष मिले हैं, वे बौद्ध धर्म से जुड़े हुए हैं।


ट्रस्ट ने कहा- मूर्तियां मिली, जिलानी बोले- प्रोपगैंडा

बता दें कि समतलीकरण के दौरान मिले अवशेष को राम मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर के अवशेष और खंडित मूर्तियां बताया है। वहीं मुस्लिम पक्ष ने दलील दी है कि ये मूर्तियां राम मंदिर का अवशेष नहीं हैं। इस पर अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील रहे जफरयाब जिलानी ने कहा कि यह सब एक प्रोपगेंडा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एएसआई के सबूतों से यह साबित नहीं होता है कि 13वीं शताब्दी में वहां कोई मंदिर था।



बौद्ध अवशेष को लेकर 2018 में दायर हुई थी याचिका

दरअसल इस मामले में अयोध्या निवासी विनीत कुमार मौर्य ने साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। विनीत का दावा था कि विवादित स्थल के नीचे कई अवशेष दबे हुए हैं जो अशोक काल के हैं और इनका कनेक्शन बौद्ध धर्म से है। याचिका में दावा किया गया था कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था। मौर्य ने अपनी याचिका में कहा था, 'एएसआई की खुदाई से पता चला है कि वहां स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे थे जो किसी बौद्घ विहार की विशेषता होते हैं।' मौर्य ने दावा किया था, 'जिन 50 गड्ढों की खुदाई हुई है, वहां किसी भी मंदिर या हिंदू ढांचे के अवशेष नहीं मिले हैं।'

हाइलाइट्स
  • अयोध्या में राम मंदिर निर्माण समतलीकरण के दौरान मिली मूर्तियों पर हो रही है बयानबाजी
  • ट्विटर पर हैशटैग बौद्धस्थल अयोध्या हो रहा ट्रेंड, लोगों ने यूनेस्को से की निष्पक्ष खुदाई की मांग
  • लोगों का दावा-अयोध्या में मिले खुदाई के अंश बौद्ध धर्म से जुड़े हैं, अशोक के शासन के हैं अवशेष

चुनावी फायदा लेने की कोशिश:अयोध्या में पुरावशेष मिलने पर बोले जफरयाब जिलानी

अयोध्या : उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए जमीन का समतलीकरण हो रहा है। इसी दौरान मंदिर और मूर्तियों के अवशेष मिलने पर भी अब बयानबाजी शुरू हो गई है। अयोध्या विवाद में सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील रहे जफरयाब जिलानी ने कहा है कि यह सब एक प्रोपगेंडा है। उन्होंने कहा कि यह सब बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने की रणनीति है, चाहें तो भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) से खुदाई करवा लें।

इससे पहले श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्र्स्ट के सदस्य और विश्व हिंदू परिषद के सचिव चंपत राय ने बताया था कि समतलीकरण में मंदिर के अवशेष और खंडित मूर्तियां मिली हैं। मुस्लिम पक्ष ने दलील दी है कि ये मूर्तियां राम मंदिर का अवशेष नहीं हैं। हमारे सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ से बातचीत में जफरयाब जिलानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि एएसआई के सबूतों से यह साबित नहीं होता है कि 13वीं शताब्दी में वहां कोई मंदिर था।
जिलानी बोले- सब चुनावी फायदा लेने की कोशिश
जफरयाब जिलानी ने यह भी कहा कि यह सब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की बिहार, बंगाल और यूपी के चुनाव में फायदा लेने की कोशिश भर है। वहीं, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव खालिक अहमद खान ने कहा कि जो अवशेष मिले हैं, वे बौद्ध धर्म से जुड़े हुए हैं।

दूसरी तरफ मूर्तियां मिलने पर इतिहासकार इरफान हबीब और प्रोफेसर रोमिला थापर को ट्रोल किया जा रहा है। दरअसल, इरफान हबीब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे। उन्होंने तो सुप्रीम कोर्ट की इस बात को भी मानने से इनकार कर दिया था कि 1856-57 से पहले अयोध्या में नमाज नहीं पढ़ी जाती थी। वह पहले से ही इस बात के खिलाफ हैं कि विवादित भूमि पर कभी मंदिर था। उन्हीं की तरह इतिहासकार रोमिला थापर ने भी आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की खुदाई में मिले सबूतों को मानने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी स्वीकार नहीं किया था।

हाइलाइट्स
  • अयोध्या में रामजन्मभूमि परिसर में जमीन समतलीकरण के दौरान मंदिर और मूर्ति के अवशेष पाए गए
  • अवशेष मिलने की खबरों पर जफरयाब जिलानी ने कहा कि यह सब चुवानी फायदा लेने की कोशिश है
  • मुस्लिम पक्ष की दलील है कि एकबार फिर से एएसआई से अयोध्या में खुदाई करवानी चाहिए

अयोध्या में मंदिर के मिले अंश तो निशाने पर इरफान हबीब और रोमिला थापर क्यों

नई दिल्ली : इन दिनों अयोध्या में राम जन्मभूमि के समतलीकरण (Land leveling in Ayodhya) का काम हो रहा है, ताकि वहां सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जा सके। समतलीकरण के दौरान वहां से देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां मिल रही हैं, जिससे ये बात और पुख्ता हो जाती है कि वहां पर पहले मंदिर था। इसी बीच अचानक ट्विटर पर इरफान हबीब (Irfan Habib) ट्रेंड करने लगे और पता चला कि वह भी इन खंडित मूर्तियों के मिलने की वजह से ही ट्रेंड कर रहे हैं। ट्विटर पर लोग इतिहासकार इरफान हबीब और रोमिला थापर (Romila Thaper) पर हमले करते दिखे। वह उनसे माफी मांगने के लिए कह रहे थे, लेकिन सवाल ये है कि क्यों?




दरअसल, इरफान हबीब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे। उन्होंने तो सुप्रीम कोर्ट की इस बात को भी मानने से इनकार कर दिया था कि 1856-57 से पहले अयोध्या में नमाज नहीं पढ़ी जाती थी। वह पहले से ही इस बात के खिलाफ हैं कि विवादित भूमि पर कभी मंदिर था। उन्हीं की तरह इतिहासकार रोमिला थापर ने भी आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की खुदाई में मिले सबूतों को मानने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को भी स्वीकार नहीं किया था। यही वजह है कि लोग ट्विटर पर दोनों को ही खरी खोटी सुना रहे थे, आइए जानते हैं लोग क्या बोले।

सोशल मीडिया पर क्या बोले लोग?

सबसे खास प्रतिक्रिया भाजपा की ओर से आई है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि सच को दबा सकते हैं, लेकिन अधिक दिनों तक छुपा नहीं सकते, एक दिन वह सामने जरूर आ जाता है। उन्होंने कहा कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए हो रही खुदाई के समय सामने आईं दुर्लभ मूर्तियां जय जय श्रीराम।


इरफान हबीब और रोमिला थापर पर निशाना साधते हुए एक ट्विटर यूजर ने लिखा- 'हिंदू विरोधी, भारत विरोधी इतिहासकर जैसे इरफान हबीब, रोमिला थापर को इस मुद्दे पर प्रोपगेंडा के तहत झूठ बोलने, सुन्दर और विस्तृत इतिहास छुपाने और अयोध्या मामले पर कोर्ट को भटकाने के लिए उम्रकैद की सजा होनी चाहिए। यह और कुछ नहीं बल्कि विश्वासघात है।'

एक अन्य यूजर ने इरफान हबीब और रोमिला थापर पर निशाना साधते हुए कहा- इरफान हबीब, अपनी हठधर्मिता और बेशर्मी से बोले गए झूठ के लिए क्या आप इस पर कुछ कहेंगे? भारत के लोग आपको और रोमिला थापर को कभी माफ नहीं करेंगे।


ट्विटर पर एक अन्य यूजर अभिषेक सिंह ने लिखा- 'इतिहास ही कुछ इतिहासकारों के मुंह पर करारे तमाचे मार रहा है। रोमिला थापर और इरफान हबीब जैसे कुछ लोग इतिहास नहीं देश के गद्दार हैं।'

बौद्धों की है अयोध्या की विवादित जमीन! सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी. इस बीच इस विवाद में एक तीसरा पक्ष भी खड़ा हो गया है. बौद्ध समुदाय के कुछ लोगों ने दावा किया है कि यह विवादित जमीन बौद्धों की है और यह पहले एक बौद्ध स्थल था.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार, अयोध्या में रहने वाले विनीत कुमार मौर्य ने सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में याचिका दायर की है. उन्होंने विवादित स्थल पर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग (ASI) द्वारा चार बार की जाने वाली खुदाई के आधार पर यह दावा किया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश पर ऐसी अंतिम खुदाई साल 2002-03 में हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका पिछले हफ्ते ही दायर की गई है. इसे संविधान के अनुच्छेद 32 (अनुच्छेद 25, 26 और 29 के साथ) के तहत एक दीवानी मामले के रूप में दर्ज किया गया है. कहा गया है कि यह याचिका 'बौद्ध समुदाय के उन सदस्यों की तरफ से दायर की गई है जो भगवान बुद्ध के सिद्धांतों के आधार पर जीवन जी रहे हैं.'
अयोध्या में बौद्ध विहार होने का दावा
याचिका में दावा किया गया है कि बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले उस जगह पर बौद्ध धर्म से जुड़ा ढांचा था. मौर्य ने अपनी याचिका में कहा है, 'एएसआई की खुदाई से पता चला है कि वहां स्तूप, गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभे थे जो किसी बौद्घ विहार की विशेषता होते हैं.' मौर्य ने दावा किया है, 'जिन 50 गड्ढों की खुदाई हुई है, वहां किसी भी मंदिर या हिंदू ढांचे के अवशेष नहीं मिले हैं.'

उन्होंने इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की है कि विवादित स्थल को श्रावस्ती, कपिलवस्तु, कुशीनगर और सारनाथ की तरह ही एक बौद्ध विहार घोषित किया जाए.
सिद्धार्थ तिवारी
"अयोध्या से संबंधित सारी सच्चाई सबूतों सहित सारी दुनिया में फैलाई जाए। मनुवादियों द्वारा लिखित झूठी बातों को उजागर किया जाना चाहिए। जिन भी सक्षम भाईयों को इस विषय में दिलचस्पी हो, मेहरबानी करके विषय वस्तु से संबंधित जानकारियों को सबूतों सहित संकलन कर एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाए। बुद्ध को कुटील पाखंडी मनुवादियों द्वारा बनावटी रूपों में गढ़ कर धम्म के साथ खिलवाड़ किया है। संगठन बना कर योजनबद्ध तरीके काम किया जाना चाहिए।"
भारतीय जनता पार्टी की सांसद सावित्रीबाई फुले
भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने अयोध्या में विवादित स्थल पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है.
उत्तर प्रदेश में बहराइच से भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले ने शुक्रवार रात गोंडा में एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उच्च न्यायालय के आदेश पर अयोध्या में जब विवादित स्थल पर खुदाई की गई थी, तो वहां तथागत से जुड़े अवशेष निकले थे. इसलिए अयोध्या में तथागत बुद्ध की ही प्रतिमा स्थापित होनी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘मैं साफ करना चाहती हूं कि बुद्ध का भारत था. अयोध्या बुद्ध का स्थान है. इसलिए वहां तथागत बुद्ध की ही प्रतिमा स्थापित होनी चाहिए.’
संघ के प्रचारक एवं भाजपा के राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा द्वारा राम मंदिर निर्माण के पक्ष में एक निजी विधेयक लाए जाने संबंधी सवाल पर भाजपा सांसद ने कहा, ‘भारत का संविधान धर्म निरपेक्ष है, जिसमें सभी धर्मों की सुरक्षा की गारंटी दी गई है. संविधान के तहत ही देश चलना चाहिए. सांसद या विधायक को भी संविधान के तहत ही चलना चाहिए.’
भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले का यह बयान ऐसे वक़्त आया है जब साधु-संत तथा विभिन्न तथाकथित हिंदूवादी संगठन अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए क़ानून बनाने के लिए सरकार पर लगातार दबाव बना रहे हैं.
उच्चतम न्यायालय द्वारा अयोध्या के विवादित स्थल मामले पर नियमित सुनवाई अगले साल जनवरी तक टाले जाने के बाद से शुरू हुई इस कवायद के बाद भाजपा नेता राम मंदिर निर्माण को लेकर लगातार बयान दे रहे हैं.
अयोध्या में राम मंदिर विवाद के बीच भारतीय जनता पार्टी की सांसद सावित्रीबाई फुले ने राम मंदिर पर कहा कि अयोध्या में भगवान बुद्ध की प्रतिमा लगनी चाहिए क्योंकि वहां खुदाई के वक़्त गौतम बुद्ध के अवशेष मिले थे..
दरअसल, यहां पर सातवीं शाताब्दी में चीनी यात्री हेनत्सांग आया था। उसके अनुसार यहां 20 बौद्ध मंदिर थे तथा 3000 भिक्षु रहते थे और यहां हिंदुओं का एक प्रमुख और भव्य मंदिर था। मललसेकर, डिक्शनरी ऑफ पालि प्रापर नेम्स, भाग 1, पृष्ठ 165 के अनुसार अयोध्यावासी हिंदू गौतम बुद्ध के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन्होंने उनके निवास के लिए वहां पर एक विहार का निर्माण भी करवाया था। संयुक्तनिकाय में उल्लेख आया है कि बुद्ध ने यहां की यात्रा दो बार की थी। इस सूक्त में भगवान बुद्ध को गंगा नदी के तट पर विहार करते हुए बताया गया है। इसी निकाय की अट्ठकथा में कहा गया है कि यहां के निवासियों ने गंगा के तट पर एक विहार बनवाकर किसी प्रमुख भिक्षु संघ को दान कर दिया था। वर्तमान अयोध्या गंगा नदी के तट पर स्थित नहीं है।.

ज्ञापन

प्रतिष्ठा में,. 

 महामहिम राष्ट्रपति महोदय भारत सरकार नई दिल्ली 
विषय :-- अयोध्या जिला फैजाबाद उत्तर प्रदेश में हो रही खुदाई में तथागत भगवान बुद्ध की मूर्ति व बौद्ध कालीन अवशेष मिलने पर उस स्थल को पुरातात्विक स्मारक घोषित किए जाने के संबंध में ज्ञापन

महोदय ,
      अवगत कराना है कि अयोध्या जिला फैजाबाद उत्तर प्रदेश में खुदाई के दौरान 2000 वर्ष पुरानी बौद्ध प्रतिमाएं, शिलालेख, धम्मचक्र आदि बौद्ध-कालीन प्रतीक व अवशेष प्राप्त हो रहे हैं .जो पुरातत्विक व ऐतिहासिक महत्व के दृष्टिकोण से मूल्यवान हैं. आप स्वयं विद्वान व जानकार हैं कि पुरातत्व महत्व के ऐतिहासिक स्थलों के साथ छेड़छाड़ करना, उनकी रचना व बनावट में बदलाव करना इतिहास को मिटाने के समान हैं और एक अक्षम्य अपराध है  .संपूर्ण भारतवर्ष में अनेकों बौद्ध स्थलों का रखरखाव व नियंत्रण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (A.S.I.) के पास है! इन सभी स्थलों का ऐतिहासिक महत्व है 
   अयोध्या में समतलीकरण व खुदाई के दौरान तथागत बुद्ध की प्रतिमा व बौद्ध प्रतीक अवशेष मिलने से उनके ऐतिहासिक व पुरातत्विक महत्त्व से इनकार नहीं किया जा सकता.
     आप स्वयं जानकार हैं कि पुरातात्विक महत्व के स्थलों की बनावट में छेड़छाड़ , तोड़फोड़ करना अथवा किसी भी प्रकार का बदलाव करना पुरातत्विक  स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 व बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम 1972 के अनुसार दंडनीय अपराध है.
            आज दिनांक 23 मई 2020 को लखनऊ में बौद्ध विद्वानों व इतिहासकारों की एक महत्वपूर्ण बैठक बौद्ध भिक्षु सुमित रत्न  थेरा जी की अध्यक्षता में आयोजित की गई  
    इस बैठक में सर्वसम्मति से निम्न प्रस्ताव पास किया गया :---
  1. उच्च प्राथमिक व ऐतिहासिक महत्व के स्थल की सामान्य खुदाई तत्काल प्रभाव से रोक दी जाए 
2. उस स्थल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की निगरानी में विधिवत उत्खनन कार्य कराया जाए.
 3.उत्खनन स्थल को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकार क्षेत्र में देकर राष्ट्रीय स्मारक के रूप में संरक्षित कर दिया जाए. 4.भारतीय इतिहास वेत्ताओं व पुरातत्व वेत्ताओं एवं बौद्ध विद्वानों का एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल उत्खनन स्थल का निरीक्षण करे और अपनी रिपोर्ट संसद को प्रस्तुत करें!. 5. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का भव्य मंदिर अयोध्या में ही किसी अन्य स्थल पर निर्मित कराया जाए.
            महामहिम राष्ट्रपति महोदय से अनुरोध है कि उक्त अनुरोध को स्वीकार कर तत्काल प्रभावी आदेश जारी करने की कृपा करें ; 
और भारतीय संविधान की रक्षा करें. 

               भवदीय
1.पूज्य बौद्ध भिक्षु सुमित रत्न थेरा
2.दददू प्रसाद पूर्व कैबिनेट मंत्री उत्तर प्रदेश शासन
3.राजाराम आनंद पूर्व राज्यमंत्री मंत्री उत्तर प्रदेश शासन
4.शैलेंद्र बौद्ध, लखनऊ
5.राजेश नंद फैजाबाद
6. दया सागर बौद्ध लखनऊ
7. लालमनि प्रसाद पूर्व सांसद बस्ती
8. अनूप प्रियदर्शी 
9. रविंद्र कुमार सुल्तानपुर 
10. विक्रम सिंह बौद्ध इटावा
11. ए.आर. अकेला साहित्यकार अलीगढ़
12.मिथिलेश कुमार लखनऊ

कोरोना व्हायरस ,आयोध्या वाद व एक मोठे षडयंत्र
- मनोज काळे, ठाणे

आयोध्या येथील राम मंदिर ( पुर्वीची बाबरी मज्जीद)  हे प्राचिन बौद्ध स्थळ आहे व ते बौद्धांच्या ताब्यात दिले पाहीजे असा या आठवड्यात अचानक एकदम उद्रेक झाला, सोशल मिडीयावर सगळीकडे तीच चर्चा सुरु झालेली दिसली, जो तो सर्व मुद्दे विसरुन फक्त आयोध्या मंदिर आता बौद्धांनी मिळवले पाहीजेच असा सुर उमटायला सुरवात झालेले दिसले, यात भाजपात असलेले रामदास आठवले व इतर संघाचे गुलाम असलेले बहुजन नेते प्रामुख्याने ही मागनी करताना दिसले या गोष्टीला अधोरेखित केले पाहीजे.

★आयोध्या हे बौद्ध क्षेत्र आहे यासाठी जे कोर्टात केस लढत आहेत त्या वीनीतभाई मौर्य यांच्याशी स्वतः फोनवर बोललो आहे, ते म्हणाले की सोशल मीडियावर जी कोर्टाने बौद्धांच्या बाजुने निकाल दिला आहे अशी बातमी व्हायरल होत आहे ती फेक आहे ,कोर्ट त्यांचे काही ऐकुनही घेत नाही, मागच्या तारखेला तर यांना बोलुही दिले नव्हते,तरी या बद्दल खोट्या बातम्या पसरवुन समाजात संभ्रम व अस्थिरता निर्माण केली जात आहे, आद विनीत मौर्य यांनी खंत व्यक्त केली की त्यांच्याकडे केस लढायला पैसेही कमी पडत आहे, सोबत त्यांचा नंबर देतो ज्यांना सविस्तर माहीती हवी असेल त्यांनी विनीत मौर्य स्वता कॉल करुन मिळवावी हि विनंती ( 9919519333 )

कोरोना ने जगात थैमान घातले, भारतातही मार्च महिण्यापासुन लॉकडाऊन लावला गेला, 
कोणत्याही नियोजनाशिवाय देशात लॉकडाऊन लावला गेला, भारतीय मजुर, कामगार, हातावर पोट असणारा प्रत्येक नागरिक उद्धस्त झाला, देशातील जवळपास शंभर कोटी पेक्षा जास्त नागरिकांचे जीवन उध्वस्त झाले,पन मीडिया मधुन मात्र ईतर देशांपेक्षा भारत किती चांगल्या स्थितीत आहे असाच प्रचार लावुन धरला, हजारो किलोमिटर चालुन घरी पोचलेला कानगार किंवा गावाबाहेर अस्पृश्यासारखे जगत असलेला क्वारंटाईन मजुर याची व्यथा मिडीयाने लपवली, नियोजन शुन्यता किंवा जानीवपुर्वक केले असेल पन आज देश उद्धस्त झालेला आहे, या सर्वांचा रोष मीडिया व आरएसएस भाजपाच्या आयटी सेलने चायना कडे वळवण्याचा प्रयत्न केला, पन हा रोग चायना ने भारतात आणुन सोडलेला नाही तर जे भारतीय कामगार विदेशात कामाला होते त्यांच्याकडुन नकळत हा आजार भारतात आलेला आहे हे सर्वांना मान्य असेल,

जगभरातुन भारतात आलेल्या प्रत्येक प्रवाशांचा विजा नंबर, पासपोर्ट नंबर व पत्ता सरकार कडे असतो तरीही या सर्वांना न तपासता त्यांना आपापल्या घरी जाऊ दिले गेले,
त्यांच्यापैकी ज्यांना या वायरस ची लागन झालेली त्यांनी तो व्हायरस देशात पसरवला व आज संपुर्ण देश मरन संकटात आलाय, 

सरकारने सर्व आंतरराष्ट्रीय विमानतळे लॉक करुन तेथे सर्व प्रवाशांची तपासनि केली असती,विदेशातुन आलेल्या फक्त लाखभर प्रवाशांची तपासनी करुन त्यांना घरी सोडले असते तर 130 कोटी नागरिक उद्धस्त झाले नसते, त्यामुळे याला मी पुर्वनियोजित कट म्हणतोय.

सरकारने नोटबंदी करुन जनतेचे कंबरडे मोडले, नंतर जिएसटी लावुन व्यापार्यांचे कंबरडे मोडले, आता लॉकडाऊन लावुन 100% मजुरांचे जीवन मातीत मिळवले आहे,  इतके सर्व करुनही पुन्हा मिडीयाच्या आधारे हेच लोक देशाचे तारनहार घोषित केले जातील, पन देश म्हणजे जनताच ना, जी आज पुर्नतः उद्धस्त झालेली आहे, 

★सरकारच्या मागच्या सात वर्षातील अपयशांना झाकण्यासाठी कोरोनाचा रामबाण म्हणुन उपयोग करुन घेण्यात संघ परिवाला यश आले आहे, सरकाने सहा वर्षात बुडवलेल्या अर्थव्यवस्थेचे खापर आता लॉकडाऊनवरच टाकले जाणार आहे,
 या सर्व पार्श्वभुमीवर भारतातील बौद्ध समाजच फक्त सरकारला धारेवर धरत होते, सरकारच्या प्रत्येक गोष्टीवर बारिक नजर ठेवुन होते,

मागच्या आठवड्यातच अॅड प्रकाश आंबेडकरांनी कोरोना हा रोग मोदीने देशात आनला आहे, व कोरोना मुळे मृत झालेल्या व्यक्तीच्या परिवाराने मोदीवर ३०२ चा गुन्हा दाखल करावा असे अवाहन जनतेला केले होते व त्याच बरोबर देशातील सर्व मंदिरांची संपत्ती ही सरकारने ताब्यात घेऊन त्याचा उपयोग जनतेच्या कल्याणासाठी करावी असे सुचवले होते. पन हे सरकार धर्मवेडे व धर्मांध लोकांच्या खांद्यावर तरले आहे, उभे आहे, त्यांनी या बौद्ध समाजाला बदनाम करण्यासाठी किंवा बौद्धांना डायवर्ट करण्यासाठी
नवा मुद्दा चर्चेत आनला आहे की आयोध्या मंदिर हे प्राचिन बौद्ध मंदिर आहे व ते आता बौद्धांनी ताब्यात घेतले पाहीजे...

होय, तेच नाही तर भारतातील सर्वच प्राचीन मंदिले ही बुद्ध विहारे व स्तुपेच आहेत हे आम्हालाही माहीत आहे, तिरुपती बालाजी, पंढरपुरचे विठ्ठल मंदिर, उडीसाचे, केरळे सर्व मंदिरे ही प्राचीन बौद्ध मंदिरेच आहेत, यावर शंभर वर्षांपासुन संशोधन होत आहेत,
महान सम्राट अशोकाने ८४,००० स्तुपे बनवली होती त्यामुळे भारतातील कोणत्याही डोंगरावर टिकाव मारला तर तेथे फक्त बुद्ध सापडतात,  या देशाचा सुवर्ण काळ बौद्ध काळालाच म्हटले जाते.

★ ऐन लॉकडाऊन काळात बौद्धांना राम मंदिर की बुद्ध विहार या वादात गुंतवण्यामागचे कारण काय?

भाजपाचे राजकीय अपयश जनतेसमोर मांडणार्या बौद्ध समाजाला मोदी कडुन एका वेगळ्या विषयाकडे वळवले पाहीजे हा एकच मुद्दा यामागे आहे, सहा दिवसा पासुन बौद्ध लोक मोदीच्या कुकर्मावर चर्चा करने बंद करुन बौद्ध मंदिर की राम मंदिर यावरच अडकुन पडलेले दिसत आहेत यातच संघ परिवाराचा विजय आहे.

 ★ काही बोद्ध म्हणत आहेत की हा मुद्दा अंतरराष्ट्रीय स्तरावर न्यायची वेळ आहे.
 मित्रांनो, सार्या जगाला माहीत आहे की भारत ही बुद्धभुमी आहे व येथे सम्राट अशोकाने हजारो विहार स्तुपे बांधली होती व ती सर्व मुस्लिम व हिंदु कर्मठांनी मोडुन तोडुन टाकली होती,

जगाला हे पन माहीत आहे की जगातील प्रत्येक बौद्धाचे श्रद्धास्थान असलेले महाबोधी विहार, बुद्धगया हे ब्राह्मनांच्या ताब्यात आहे व त्यासाठी शंभर वर्ष लढा सुरु आहे.

जगाला हे पन माहीत आहे की या देशात ज्यांनी बौद्ध धम्म संपवला त्या विचारांचे लोक आता सत्तेवर आले आहेत

जगाला हे पन माहीत आहे की २००७ साली बुद्धगया विहारात झालेले बॉम्बस्फोट हे हिंदु अतिरेक्यांनी केले होते.

वरील कोणता मुद्दा आंतरराष्ट्रीय स्तरावर निकालात निघाला आहे का? कोणत्या मुद्याला न्याय मिळाला आहे का?  याचे एकच उत्तर आहे .....नाही.

म्हणुन आपन थोडा वेळ संयंम पाळावा लागेल, 
जग कोरोनाशी लढत असताना बौद्ध लोक मात्र एका मंदिरासाठी झगडत होते असा आपल्यावर कंलंक लावला जाईल, जो बौद्ध समाज आज मोदीच्या कोरोना आडुन होत असलेल्या षडयंत्रांना उघडे पाडतोय तोच समाज देश संकटात असताना मंदिर विहार वाद करत होता असा डाग आपल्यावर लावला जाणार आहे त्यामुळे आपन लॉकडाऊन संपेपर्यंत तरी संयम ठेवायला हवा.

आयोध्या बुद्धकालीन साकेत या पुस्तकात सविस्तर सिद्ध केले आहे की तेथे बुद्ध विहारच होते, व असे अनेक संशोधने आहेतच, आपल्यासाठी हा मुद्दा खुप महत्वाचा आहे पन त्या मुद्यावर आपन कोरोना संकट व लॉकडाऊन अासताना अडुन बसलो तर आपले तिहेरी नुकसान होणार आहे ते असे
१. बौद्ध लोक मोदीला घेरत आहेत ते काम मागे पडेल
२. बोद्धांना पुन्हा आयसोलेट करने त्यांना सोपे जाईल
३.बौद्ध लोक देशापेक्षा धर्माला महत्व देतात असा प्रचाल होईल..

संघ परिवाराचे हे हातखंडे नविन नाहीत त्यांनी मुस्लिमांसोबतही हेच खेळ खेळुन मुस्लिमांना आज अविश्वसनीय ठरवले आहे, मुस्लिमां विरुद्ध सर्व ओबीसी, बहुजनांना कंडीशनिंग केले गेले आहे तसेच आता बौद्धांबद्दल करण्याचे संघाचे मनसुबे आहेत.

त्यामुळे लॉकडाऊन संपेपर्यंत तरी आयोध्या राम मंदिर की बुद्ध विहार ही चर्चा थांबवावी असे मला वाटते आहे, आपन या देशाचे सच्चे नागरिक आहोत, भाजपाचा राजकीय नालायकपना झाकण्यासाठी आपला हातभार लागु नये साठी सतर्क राहीले पाहीजे, त्यांच्या जाळ्यात आपन अडकले नाही पाहीजे, नंतर आपन आपले सर्व मुद्दे घेऊन लढायचेच आहे.
भाजपाला तारक ठरेल अशा मुद्यांना आपन तुल दिली नाही पाहीजे. आपन त्यांचे काम सोपे करु नये.

★ या वादाला हवा देणारे नेते मंडळी आहेत रामदास आठवले, वामन मेश्राम, राजरत्न आंबेडकर व इतर भाजप धार्जिन नेते...माझे या महान नेत्यांना माझे खुले अवाहन आहे की जर तुम्हाला लॉकडाऊन काळात भाजपाने या मुद्याला समाजात पेरुन समाजाला व लोकशाहीला अडचनीत टाकण्याचे काही कारस्थान केले असेल असे वाटत नसेल किंवा तुम्हाला ते कळत नसेल तर 

१. रामदास आठवले केंद्रात मंत्री आहेत त्यांनी राम मंदिर बद्दल सुप्रिम कोर्टात ती वादग्रस्त जागा राम लल्लाची आहे असा निर्णय दिला तो बदलण्यासाठी लोकसभेत कायदा करुन घ्यावा कारण त्याशिवाय सुप्रिम कोर्टाचा निर्णय बदलता येत नाही,

२ वामन मेश्राम - यांच्या संघटनेकडे समाजाचे अनगिनत रुपये जमा आहेत त्यातुन त्यांनी राममंदिर विरुद्ध केस लढणार्या विनीत बौद्ध यांची आर्थिक मदत करावी, कारण त्यांची आर्थिक अडचन आहे असे त्यांनी सांगीतले आहे.

३.राजरत्न आंबेडकर यांनी या लढाईचे स्वता नेतृत्व करावे,

नुसते सोशल मीडियावर मोठमोठे बोलुन काही होणार नाही, या तीन नेत्यांनी आयोध्या मंदिर की बौद्ध विहार याबद्दल नेतृत्व केले पाहीजे.जे लोक कायदेशीर लढत आहेत त्यांची मदत केली पाहीजे, 
फेक बातम्या वाचुन कोर्टात प्रलंबित वादग्रस्त व अतिसंवेदनशील मुद्यांना पेटवुन संपुर्ण समाज अडचनीत येईल अशी भुमिका घेणे आता तरी टाळावे.

हे माझे वैयक्तिक विश्लेषन आहे, याच्याशी कुनी सहमत असावे असा अग्रह नाही. फक्त डोकं वापरावे व विचार करावा एवढी माफक अपेक्षा ठेवतो.

- मनोज नागोराव काळे, ठाणे







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I AM POST GRADUATED FROM THE NAGPUR UNIVERSITY IN JOURNALISM

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