मजदूरों का पलायन |
संजय पाटिल : नई दिल्ली : लॉकडाउन के बाद इन मजदूरों के सामने संकट आ गया कि इस दौरान कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे? धंधा-पानी, रोजगार सब ठप। कमरे का किराया कैसे देंगे? इन्हीं सवालों और आशंकाओं के बीच पहले तो मजदूरों ने पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने-अपने घरों के लिए कूच किया। इस बीच शुक्रवार को ही अफवाहें फैल गईं कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर बसें मिल रही हैं जो यूपी के तमाम शहरों को जा रही हैं। इसके बाद तो मजदूरों का रेला ही उमड़ पड़ा बॉर्डर पर। सोशल डिस्टेंसिंग हवा हो गई। मजदूरों के साथ-साथ उस भीड़ को संभालने में लगे पुलिसकर्मियों के भी कोरोना वायरस के चपेट में आने का खतरा बढ़ चुका है। इन मजदूरों में कुछ वैसे भी लोग हैं, जिन्हें लगता है कि शहर में उन्हें कोरोना वायरस का खतरा है लेकिन वे अगर गांव पहुंच गए तो इससे बच जाएंगे।
21 दिनों का लॉकडाउन सिस्टम की नाकाबिलयत की भेंट चढ़ता दिख रहा है। दिल्ली-एनसीआर में जगह-जगह मजदूरों के सामूहिक पलायन की खतरनाक तस्वीरें आ रही हैं। आनंद विहार और धौला कुआं में हजारों प्रवासी मजदूर इस आस में उमड़े हुए हैं कि उनके लिए बसें चलेंगी और वे अपने-अपने घर पहुंचेंगे। ये तस्वीरें लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में ही इसके मकसद में नाकामी की मुनादी कर रही हैं। ये तस्वीरें डराती हैं। सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) तार-तार हो चुकी है। सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इन खतरनाक मंजरों के लिए कौन है जिम्मेदार, कौन हैं मजदूरों के पलायन के गुनहगार?सरकारों की नाकामी
दिल्ली-एनसीआर की इन डरावनी तस्वीरों की जिम्मेदारी से न तो केंद्र सरकार बच सकती है, न दिल्ली सरकार और न ही यूपी सरकार। यह समूचे सिस्टम की सामूहिक नाकामी है। यह सरकारों के बीच सामंजस्य की कमी का भी बेपर्दा होना है। इन सबके ऊपर अफवाहों ने आग में घी डालने का काम किया। इन सबने मिलकर लॉकडाउन के उद्देश्यों की ही पूर्णाहूति दे दी।
भूख, गरीबी, मजबूरी और अफवाह
लॉकडाउन के बाद इन मजदूरों के सामने संकट आ गया कि इस दौरान कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे? धंधा-पानी, रोजगार सब ठप। कमरे का किराया कैसे देंगे? इन्हीं सवालों और आशंकाओं के बीच पहले तो मजदूरों ने पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने-अपने घरों के लिए कूच किया। इस बीच शुक्रवार को ही अफवाहें फैल गईं कि दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर बसें मिल रही हैं जो यूपी के तमाम शहरों को जा रही हैं। इसके बाद तो मजदूरों का रेला ही उमड़ पड़ा बॉर्डर पर। सोशल डिस्टेंसिंग हवा हो गई। मजदूरों के साथ-साथ उस भीड़ को संभालने में लगे पुलिसकर्मियों के भी कोरोना वायरस के चपेट में आने का खतरा बढ़ चुका है। इन मजदूरों में कुछ वैसे भी लोग हैं, जिन्हें लगता है कि शहर में उन्हें कोरोना वायरस का खतरा है लेकिन वे अगर गांव पहुंच गए तो इससे बच जाएंगे।
मजदूरों को मरने के लिए छोड़ने जैसा
शुक्रवार को दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर मजदूरों को हुजूम इस उम्मीद में उमड़ना शुरू हुआ कि वहां से उन्हें अपने-अपने शहरों के लिए बसें मिलेंगी। आनन-फानन में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया कि मजदूर कहीं नहीं जाएंगे, उनके खाने-पीने, रहने का इंतजाम हम करेंगे। मीडिया में मजदूरों के पलायन की खबरें सुर्खियां बंटोरने लगीं। सोशल मीडिया में ये तस्वीरें वायरल हो गईं। शाम होते-होते यूपी सरकार ने बसें भेजने का ऐलान कर दिया। दिल्ली सरकार ने भी बसें लगा दीं। अब तक कई मजदूरों को उनके-उनके घर भेजा भी जा चुका है, बिना किसी स्क्रीनिंग के, बिना किसी जांच के। मजदूरों को बसों से पहुंचाने के पीछे नीयत चाहे जो हो, लेकिन हकीकत यही है कि यह मदद के नाम पर उन्हें मरने के लिए छोड़ने जैसा है। क्या दिल्ली सरकार या यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार इस बात की गारंटी लेगी कि इन मजदूरों में से किसी में कोरोना का संक्रमण नहीं था। इसने ग्रामीण भारत में भी कोरोना के संक्रमण का खतरा बढ़ा दिया है, जो अब तक बहुत हद तक इस महामारी से अछूता था।
दिल्ली सरकार की नाकामी
दिल्ली सरकार लगातार कह रही है कि वह किसी को भूखे नहीं सोने देगी और लाखों लोगों के लिए खाने-पीने का इंतजाम कर रही है। वह बार-बार मजदूरों से अपील कर रही है कि वे बॉर्डर से लौट आएं, उनकी हर जरूरतों का वह ख्याल रखेगी। लेकिन इन सबसे केजरीवाल सरकार अपनी जिम्मेदारी और अपने गलतियों से पल्ला नहीं झाड़ सकती। लॉकडाउन के दौरान आखिर इतने बड़े पैमाने पर मजदूरों का मूवमेंट कैसे होने दिया गया? डीटीसी बसों के एक तिहाई बेड़े को चलाने का वादा था तो आधे बेड़े को क्यों उतार दिया गया? बसों से मजदूरों को बॉर्डर तक क्यों छोड़ा गया? इन सवालों से दिल्ली सरकार नहीं बच सकती। मजदूरों का पलायन इस बात की भी तस्दीक करता है कि अरविंद केजरीवाल उन्हें भरोसा देने में नाकाम रहें कि उन्हें उनकी कर्मभूमि दिल्ली में भूखों नहीं मरना पड़ेगा।
यूपी सरकार का 'गुनाह'
पलायन कर रहे मजदूरों का समंदर जब दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर उमड़ने लगा तो यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार दबाव में आ गई। आनन-फानन में उसने मजदूरों को लाने के लिए बसें उतारने का फैसला किया। यूपी सरकार के इस फैसले ने अब सूबे के गांवों में भी कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को बढ़ा दिया है। कहां तो मजदूरों के लिए राहत शिविर बनाने की जरूरत थी, जहां उनके रहने, खाने-पीने, इलाज जैसी सुविधाओं का इंतजाम हो और कहां योगी आदित्यनाथ सरकार ने हड़बड़ी में कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे को बढ़ा दिया है।
जरूरत थी कि मजदूर जहां थे, या जहां हैं, वहीं पर उनके ठहरने, खाने, पीने, दवाई वगैरह का पुख्ता इंतजाम किया जाता। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल रखने की कोशिश की जाती। ठीक वैसे ही जैसे बाढ़ जैसी विभीषिकाओं के वक्त राहत शिविरों का इंतजाम होता है। लेकिन यूपी सरकार ने हड़बड़ी में मजदूरों को उनके घर भेजना शुरू कर दिया। बिना किसी जांच के। बिना किसी स्क्रीनिंग के। होने को तो यह भी हो सकता था कि मजदूर जिन जिलों के थे, वहां मुख्यालयों पर उनके लिए शिविर बनाकर उन्हें कम से कम 14-15 दिनों के लिए आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था होती। उनकी निगरानी होती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब अगर इनमें से एक में भी कोरोना संक्रमण पाया गया तो यह इन हजारों मजदूरों और उनके परिवारों के साथ-साथ उनके गांवों लिए भी खतरे की घंटी होगी। ऐसा न हो तभी बेहतर, अगर हुआ तो नतीजे बहुत खतरनाक होंगे।
मोदी सरकार की नाकामी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को 21 दिनों के लॉकडाउन का ऐलान किया था। तब उन्होंने देशवासियों से हाथ जोड़कर अपील की थी कि वे इन 21 दिनों में बिल्कुल भी घरों से बाहर न निकलें नहीं तो देश 21 साल पीछे चला जाएगा। कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए लॉकडाउन तो जरूरी था, लेकिन क्या सरकार मजदूरों के सामूहिक पलायन के लिए तैयार थी? मजदूरों का पलायन बताता है कि केंद्र सरकार इन लोगों को यह भरोसा दे पाने में नाकाम रही कि वे भूख से नहीं मरेंगे। पीएम मोदी ने लॉकडाउन के ऐलान के बाद गरीबों के लिए 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपये के राहत पैकेज का भी ऐलान किया, लेकिन यह भी इन मजदूरों को भरोसा नहीं दिला पाया कि केंद्र या राज्य की सरकारें उन्हें भूख से नहीं मरने देंगी।
Delhi Govt to give Rs 5,000 to construction workers: Kejriwal
DELHI Chief Minister Arvind Kejriwal on Tuesday announced that his Government would give Rs 5,000 to each construction worker in the wake of the coronavirus outbreak and constituted a five-member doctors’ panel to prepare a plan to deal with situation if the national capital enters stage 3 of COVID-19. Addressing a press conference, Kejriwal said that the livelihood of construction workers has been affected due to coronavirus as the city has gone under lockdown since Monday.
Prime Minister Narendra Modi addressed the nation at 8 pm and announced a 21-day countrywide lockdown from midnight. According to an official, the Delhi Government’s move will benefit around 46,000 construction workers who are registered with the Construction Workers Welfare Board Fund. Kejriwal said no new case of coronavirus has been reported in Delhi in the past 40 hours, and the earlier number of virus-infected patients has also gone down from 30 to 23. He said it was good that some patients have recovered but cautioned about a long battle ahead against the deadly virus. He appealed to the people to help each other in these difficult times.
He said people should not discriminate against and harass those professionals such as doctors, nurses, pilots and air hostesses who are extending help in this fight against the virus. Kejriwal said he has received complaints in many places in Delhi that these great people are facing discrimination, which is unacceptable. “If anyone is affected by coronavirus, it is our responsibility to do their treatment so that they can recover fast but if they are not affected then they should not face any kind of discrimination,” he said.
देश भर में 21 दिन का लॉकडाउन जारी है। लेकिन इस मेडिकल इमर्जेंसी के बावजूद दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों से अपने-अपने गांव लौटने के लिए मजदूरों का पलायन जारी है। ऐसे में केंद्र ने भी नए सिरे से अपनी कमर कस ली है। सरकार इन बड़े शहरों से घर लौट रहे लोगों की सेहत पर कड़ी निगरानी रखने के लिए गांव-गांव जिला स्तर परअपनी नजर रखेगी।
ReplyDeleteसरकार को आशंका है कि इतने बड़े स्तर पर लोगों की भीड़ निकल रही है ऐसे में कहीं कुछ लोग भी कोविड-19 वायरस के शिकार हुए तो वे इस महामारी को समाज में फैलाने वाले कैरियर साबित हो सकते हैं। हजारों की संख्या में मजदूर वर्ग के ये लोग हाइवे किनारे पैदल मार्च करते हुए अपने घरों की ओर चल दिए हैं। इस पलायन के चलते कोरोना वायरस को फैलने से रोकने पर सरकार की यह नई बड़ी चिंता है।
नैशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) ने इस चुनौती के लिए रणनीति बनानी शुरू कर दी है। एनसीडीसी को जानकारी मिली है कि अपने घर लौटने वाले इन मजदरों की तादात उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान से है। सरकार ने इन जिलों को 'हाई रिस्क' का टैग दे दिया है। मजदूरों के इस पलायन के बाद सरकार को अब अपनी रणनीति में तेजी से बदलाव लाना होगा। इसके तहत इंटिग्रेटेड डिजीज सर्वेलांस प्रोग्राम (IDSP) यानी कि इस महामारी के निगरानी तंत्र को इन राज्यों में पहले से और भी ज्यादा मुस्तैद करना होगा।
मजदूरों के पलायन की जो मौजूदा स्थिति है उसमें लॉकडाउन के बावजूद इन लोगों में सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) को बनाए रखना संभव नहीं है। ऐसे में इन बातों से इनकार नहीं किया जा सकता के ये लोग एक-दूसरे के संपर्क में नहीं आए होंगे। एक सीनियर अधिकारी ने बताया, 'इन लोगों में अपनी रोजमर्रा के जरूरतों और काम को लेकर चिंता थी और लॉकडाउन की यह स्थिति अभी कब तक चलेगी इसके प्रति भी तस्वीर कुछ साफ नहीं है।'
लेकिन अब सरकार की नई चिंता यह है कि इस घातक वायरस की रोकथाम के लिए देश भर में जारी लॉकडाउन के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में इन लोगों के पलायन करने से इसकी संभावनाएं बहुत बढ़ गई हैं कि इनमें से कई लोग इस वायरस के कैरियर (ढोने वाले) साबित हो सकते हैं, जिससे इसके फैलने का खतरा और बढ़ गया है।
अगर ऐसा हुआ तो एक बड़ी चुनौती यह भी होगी कि ग्रामीण इलाकों में कोविड- 19 से लड़ने के इंतजाम सीमित ही हैं। ऐसे में सरकार ने IDSP के तहत इन लोगों की मॉनिटरिंग की रणनीति बनाई है। इस निगरानी के लिए बनाई गईं रैपिड रेस्पॉन्स टीमें इनके गंतव्य स्थान और सफर के दौरान भी इनकी सेहत पर कड़ी निगरानी रखेंगी।
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ReplyDeleteA 24-year-old labourer was
ReplyDeletekilled and five others injured when the autorickshaw ferrying them during the national lockdown for the coronavirus outbreak overturned in Morena district in Madhya Pradesh on Saturday, police said.
The deceased has been identified as Mukesh Sikarwar, said Rau police station in charge Dinesh Verma.
"They had entered MP from Gujarat on foot at Pitol check post in Jhabua district. They hired an autorickshaw which was carrying 13 people at the time of accident. The injured have been shifted to MY Hospital in Indore," he informed.
With thousands of migrant labourers making the journey home by foot, MP Chief Minister Shivraj Singh Chouhan said he had spoken to his counterparts in other states on this issue.
"I have asked them to arrange for food and accommodation in their states so that people don't move during the lockdown and spread coronavirus," the CM said.
"Those who have come till MP border are being taken care of and taken to safer places after following protocol to combat the virus spread," he added.
दिल्ली पुलिस ने रविवार को प्रवासी कामगारों को आनंद विहार बस अड्डे नहीं पहुंचने दिया। पुलिस ने बस अड्डे से पहले ही बैरिकेड लगाकर रास्ता रोक दिया और किसी को भी आगे नहीं बढ़ने दिया। इससे एक दिन पहले हजारों प्रवासी कामगार अपने गांव वापस जाने के लिए दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित आनंद विहार बस अड्डे पहुंच गए थे।फल बेच कर अपना गुजर-बसर करने वाले जोगिंदर सिंह ने बताया, “हम सुबह यहां आए और इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि पुलिस हमें आगे जाने दे, लेकिन ऐसा लगता है कि वे हमें अनुमति नहीं देंगे।”वह अपने परिवार के साथ सुबह आनंद विहार बस अड्डे पहुंचे ताकि उन्हें अपने गृहनगर मुरादाबाद जाने के लिए बस पकड़ सकें। सिंह ने कहा, “जो आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, वे उसे पीट रहे हैं। मैं यहां अपनी पत्नी और 11 साल के बेटे के साथ आया हूं। हम नहीं चाहते कि पुलिस हमें पीटे। अब हमारे पास सिर्फ एक ही विकल्प है कि हम विश्वास नगर इलाके में स्थित अपने घर वापस चले जाएं।”कई लोग उत्तर प्रदेश में अपने गृहनगर जाने के लिए आनंद विहार में रेल की पटरियों पर चलने की कोशिश करते हुए भी देखे गए। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन (बंद) घोषित होने के बाद, सभी तरह की कारोबारी और आर्थिक गतिविधियां थम गई हैं। इस वजह से प्रवासी कामगारों के पास कोई काम नहीं है। उनमें से अधिकतर लोग रोज़ कमा के अपना गुजर बसर करते हैं। बिना काम के उनके लिए घर का किराया देना, खाने-पीने की चीजें खरीदना, बहुत मुश्किल हो जाएगा।सिंह ने कहा, “अगर पुलिस सीमाएं खोल दे, तो हम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद तक पैदल चल सकते हैं जो यहां से करीब 100 किलोमीटर दूर है। इस बंद के कारण मेरा काम प्रभावित हुआ है। पिछले एक हफ्ते से मेरे पास कोई काम नहीं है। मैं फल बेचता हूं, जिसके लिए मुझे गाजीपुर मंडी जाना होता है, लेकिन पुलिस हमें वहां नहीं जाने दे रही है। ”शनिवार को दिल्ली, हरियाणा और यहां तक कि पंजाब के हजारों दिहाड़ी मजदूर आनंद विहार, गाजीपुर और गाजियाबाद के लाल कुआं क्षेत्रों में पहुंच गए। वे अपने-अपने गृह नगरों के लिए बसें पकड़ना चाहते थे। पुलिस के मुताबिक, 10-15 हजार लोग शनिवार को आनंद विहार में जमा हो गए थे। करीब 60-70 बसें जितने यात्रियों को ले जा सकती थीं, उतनों को ले गईं। आधी रात तक करीब 500 और बसों को प्रवासी कामगारों को ले जाने के लिए दिल्ली पहुंचना था। रविवार सुबह तक इलाके से सभी लोगों को हटा दिया गया और दिल्ली पुलिस किसी को भी आनंद विहार बस अड्डे जाने की इजाजत नहीं दे रही थी। पुलिस ने बस अड्डे से करीब 500 मीटर की दूरी पर बैरिकेड लगा दिए और बस अड्डा परिसर में प्रवेश करने वाले सभी रास्तों को बंद कर दिया है। बुटिक में काम करने वाले मोहम्मद अनवार (30) कहते हैं कि वह बिहार के सीतामढ़ी से दो हफ्ते पहले ही दिल्ली आए थे और उन्हें यह अंदाजा नहीं था कि हालात यह हो जाएंगे।अनवार ने कहा, “मैं यहां दिल्ली में अकेला हूं। मेरे माता-पिता सीतामढ़ी में रहते हैं। पुलिस हमें बस पकड़ने नहीं दे रही है। मेरी तबीयत ठीक नहीं है और मैं सीतामढ़ी पैदल नहीं जा सकता। मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है सिवाए इसके कि मैं पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर इलाके में अपने कमरे में वापस जाऊं।” दिल्ली से सीतामढ़ी की दूरी 950 किलोमीटर दूर है। देश में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़कर रविवार को 979 हो गई है। इस घातक बीमारी से मरने वालों की संख्या 25 हो गई है।
ReplyDeleteमुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा है, ‘कुछ लोग अपने गांव जाने के लिए बेताब हैं। प्रधानमंत्री ने सबसे अपील की है कि आप अपने गांव न जाएं, जहां हैं वहीं रहें। क्योंकि इतनी भीड़ में आपको भी कोरोना होने का डर है, फिर आपके माध्यम से कोरोना आपके गांव और परिवार तक पहुंच सकता है। देश के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंच जाएगा। उसके बाद देश को इस महामारी से बचाना मुश्किल होगा।’
ReplyDeleteमुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा, ‘मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि दिल्ली सरकार ने आपके रहने-खाने का पूरा इंतजाम किया हुआ है। अभी देश हित में है कि आप अपने गांव न जाएं।’ केजरीवाल की अपील के बाद आम आदमी पार्टी ने भी आम लोगों से उन लोगों की मदद करने की अपील की है, जो लॉकडाउन के कारण जहां-तहां फंसे हैं और उनके पास खाने-पीने के सामान की कमी है। आम आदमी पार्टी ने एक ट्वीट में लिखा है कि वैसे लोगों की मदद करें जो भूखे हैं और खाने की सामग्री नहीं खरीद सकते।
आम आदमी पार्टी ने यह भी कहा है कि दिल्ली सरकार ऐसे लोगों की मदद में आगे आई है जो लोग जरूरतमंद हैं। पार्टी ने अपील की है कि इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं, ताकि मुश्किल में फंसे लोगों की मदद हो सके। आम आदमी पार्टी ने इसके लिए एक मैप भी जारी किया है, जहां जरूरतमंदों के लिए सेवा के सेंटर चलाए जा रहे है। इन सेंटर्स पर लंच का समय दोपहर 12 बजे से अपराह्न बजे के बीच रखा गयं है। जबकि डिनर शाम छह बजे से रात नौ बजे तक दिया जा रहा है।
लोगों के लिए यह सेवा प्रतिदिन जारी रहेगी। दूसरी ओर दिल्ली से अपने घर को निकले लोगों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। हजारों की तादाद में लोग दिल्ली से सटे आनंद विहार आईएसबीटी पहुंच रहे हैं। शनिवार को दिन भर यह सिलसिला चलता रहा, जिससे यूपी और दिल्ली की सरकारें दबाव में आ गईं। शनिवार को यूपी सरकार ने ऐलान किया था कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से राजधानी दिल्ली छोड़कर मजबूरन पैदल अपने घर जाने वालों के लिए बसों की व्यवस्था की गई है।
दिल्ली में कोरोना वायरस: आनंद विहार-कौशांबी खाली, वापस भेजने पर फूट-फूट कर रोने लगे लोग
ReplyDeleteआनंद विहार बस अड्डे के आसपास रविवार को हालात शनिवार की तरह नहीं थे। बावजूद इसके सैकड़ों लोग सुबह से बसों का इंतजार करते नजर आए। पुलिस ने पहले उन्हें गाजीपुर गांव की तरफ रोक कर रखा था। बाद में जब आनंद विहार बस अड्डे की तरफ हालात थोड़े ठीक हुए, तो उन लोगों को उस तरफ भेजा गया। रविवार सुबह से दोपहर दो बजे तक बस अड्डे के गेट पर खड़े होकर लोग बसों का इंतजार करते रहे।
फूट-फूटकर रोने लगे लोग
दोपहर तक अधिकारी इस बात को लेकर मंथन करते रहे कि इन लोगों को कैसे और कहां पहुंचाना है। अखिरकार तय हुआ यह कि इन लोगों को बस अड्डे के भीतर पहले से यह बताए बगैर एंट्री दी जाए कि आगे उन्हें कहां भेजा जाएगा और बाद में उन्हें बसों में बैठाकर दिल्ली-एनसीआर के ही अलग-अलग इलाकों में ले जाकर छोड़ दिया जाए। कई लोग दिल्ली के दूरदराज के इलाकों से पैदल पहुंचे थे। सैकड़ों लोग फरीदाबाद, गुरुग्राम, मानेसर, बल्लभगढ़ से आनंद विहार तक पहुंचे थे। जैसे ही लोगों को पता चला कि उन्हें उनके गांव नहीं, बल्कि वापस वहीं भेजा जा रहा है, जहां से वे आए थे, तो इनमें से कुछ लोग फूट-फूट कर रोने लगे।
800 बसें लगाकर हटाई भीड़
दिल्ली सरकार से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि शनिवार की रात को बस अड्डे पर जिस तरह से हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई थी, उसे खत्म करने के लिए रात में 800 से अधिक बसें लगा कर लोगों को गाजियाबाद के लाल कुआं और हापुड़ ले जाकर छोड़ा गया। इसके बाद आनंद विहार और कौशांबी में जुटी लोगों की भीड़ छट पाई। इस बीच दिल्ली सरकार की तरफ से भी लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए प्राइवेट बसों का इंतजाम कर लिया गया था, लेकिन बाद में यह प्लान कैंसल कर दिया गया और आनंद विहार में लोगों की भीड़ खत्म हो जाने के बाद बसें वापस चली गईं।
पुलिस ने खाना भी नहीं बांटने दिया
आनंद विहार और आसपास के इलाके को खाली कराने के लिए पुलिस ने इस कदर सख्त रवैया अपना लिया था कि यहां फंसे लोगों में खाना बांटने के लिए पहुंचे लोगों को पुलिस ने खाना तक नहीं बांटने दिया। पुलिस ने यह कह कर खाने का सामान ला रही गाड़ियों को गोल चक्कर से ही लौटा दिया कि अगर इन लोगों को खाना मिल गया, तो ये रात तक नहीं हटेंगे। खाना लाए लोगों और पुलिसकर्मियों के बीच नोकझोंक भी हुई। रविवार को भी आनंद विहार इलाके में व्यवस्था के नाम पर सिर्फ पुलिस की मौजूदगी रही।
सिंघू बॉर्डर पर भी फंसे रहे हजारों लोग
सिंघू बॉर्डर पर भी रविवार को बड़ी तादाद में लोगें की भीड़ इकट्ठा हुई। ये लोग सोनीपत, पानीपत, कुंडली, राई जैसे इलाकों से पैदल चलकर आए थे और दिल्ली के रास्ते यूपी, एमपी और राजस्थान के अलग-अलग इलाकों में जाना चाहते थे। पुलिस उन्हें बॉर्डर से ही लौटा रही थी। यही हाल संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर, बादली, आजादपुर सहित कई इलाकों में देखने को मिला। इन इलाकों से हजारों मजदूर हरियाणा के रास्ते जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जाने के लिए निकले थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें बॉर्डर से ही वापस भेज दिया। ऐसे में लोगों की काफी दुर्दशा हुई।
पानीपत से पैदल चलकर सिंघू बॉर्डर तक पहुंचे पंकज अपने पूरे परिवार के साथ यूपी के मैनपुरी जाने के लिए निकले थे। उन्होंने बताया कि फैक्ट्री बंद हो जाने की वजह से खाने-पीने में काफी परेशानी होने लगी है। अब वहां रहकर क्या करेंगे।
जम्मू जाने के लिए नहीं मिली बस
संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर में मजदूरी करने वाले जम्मू के सोनू और पवन ने बताया कि वे कई दिनों से यहीं फंसे हुए हैं। जिस ठेकेदार के पास वे लोग काम करते थे, वह पहले ही चला गया। वे लोग रविवार तड़के 4 बजे संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर से पैदल चलकर दोपहर करीब 3 बजे सिंघू बॉर्डर पहुंचे थे, लेकिन जम्मू तक जाने के लिए उन्हें कोई गाड़ी नहीं मिल रही थी। उन्होंने कहा कि कोई साधन नहीं मिला, तो वे पैदल ही चले जाएंगे। उनके साथ करीब 20 लोगों का ग्रुप है।
'सीने में बहुत दर्द हो रहा है, लेने आ सकते हो...' फिर कट गई कॉल
ReplyDelete'कोई बीमारी लगी है कोरोना…। सबकुछ बंद हो गया है। ना बस है, ना ट्रेन।… पैदल ही आ रहा हूं।' दिल्ली से 320 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के मुरैना के पास अपने गांव बड़फरा को पैदल निकले रणवीर सिंह ने 15 साल की बेटी को फोन पर कुछ यही कहा था। परिवार राह देखता रह गया और थके-हारे रणवीर सिंह ने आगरा के पास रास्ते में दम तोड़ दिया। आखिरी वक्त शनिवार 28 मार्च सुबह 5 बजे अपने परिवार को फोन पर उन्होंने कहा था, 'सीने में बहुत दर्द है।… लेने आ सकते हो, तो आ जाओ… और कॉल कट गई'।
कोरोना के कारण लॉकडाउन की वजह से हजारों मजदूरों की तरह रणवीर भी दिल्ली से गुरुवार शाम पैदल घर को निकले। करीब 200 किलोमीटर का सफर तय कर शनिवार को आगरा के एनएच-2 पर उन्होंने दम तोड़ दिया। उन्हें हार्ट अटैक हुआ। अंदाजा है कि बहुत ज्यादा थकान की वजह से अटैक आया। तुगलकाबाद में एक रेस्टोरेंट में काम करने वाले 38 साल के रणवीर सिंह के पीछे उनकी पत्नी ममता और 3 बच्चे छूट गए। आंसुओं में डूबी ममता सदमे में हैं। जब उनके पति लॉकडाउन की दहशत और मजबूरी से जूझ रहे थे, तो दोनों की बातचीत भी नहीं हो पाई। परिवार का कहना है कि आगरा के पास नैशनल हाइवे-2 पर जहां उनकी मौत हुई, उनका गांव वहां से करीब 120 किलोमीटर दूर था।
करोनामुळे संपूर्ण देशभरात लॉकडाउन घोषित झाला आणि अनेक कामगार आपल्या घराच्या दिशेने चालू लागले. वाहतुकीचं कोणतंही साधन उपलब्ध नसल्याने अनेकांनी चालत जाण्याचा निर्णय घेतला. ३०० ते ५०० किमी अंतर चालत पार करत आपल्या घऱी सुखरुप पोहोचण्यासाठी अनेकांची धडपड सुरु आहे. पण यामुळे अनेकांना आपले प्राण गमवावे लागत आहेत. अशीच एक ह्रदयद्रावक घटना समोर आली आहे. ३८ वर्षीय रणवीस सिंह मध्य प्रदेशातील आपल्या घरी पोहोचण्यासाठी चालत निघाले होते. पण रस्त्यातच आग्रा येथे ह्रदयविकाराच झटका आला आणि त्यांना आपले प्राण गमवावे लागले. आपल्या कुटुंबाशी त्यांचं शेवटचं बोलणं झालं तेव्हा त्यांच्या तोंडी वाक्य होतं, “शक्य असेल तर मला घेऊन जाण्यासाठी या”.
ReplyDeleteणवीर सिंह आपल्या घरापासून १०० किमी अंतर दूर होते. पण सतत चालण्यामुळे त्यांना थकवा आला होता. यामुळे ते जमिनीवर कोसळले. अखेर ह्रदयविकाराच्या झटक्याने त्यांचा मृत्यू झाला. रणवीर सिंह यांच्या जाण्याने कुटुंबावर संकट कोसळलं आहे. त्यांची पत्नी ममता आपल्या तीन मुलांचा कसा सांभाळ करायचा या विवंचनेत अडकल्या आहेत.
रणवीर यांच्या घऱाचं काम अद्यापही पूर्ण झालेलं नाही. घऱाच्या कामामुळे कुटुंब कर्जात अडकलेलं आहे. २२ मार्च रोजी ममता यांचा फोनवरुन रणवीर यांच्याशी बोलणं झालं होतं. यावेळी त्यांनी घऱी परत या अशी विनंती केली होती. “आमच्या गावातील दिल्लीत असणारी दोन मुलं पुन्हा परतत होती. त्यांनी मी येऊ शकत नाही असं सांगितलं होतं. एका रेस्तराँमध्ये ते डिलिव्हरी बॉय म्हणून काम करत होते आणि ते अजूनही सुरु होते. त्यांनी आम्हाला काळजी घेण्यास सांगितलं आणि माझी चिंता करु नका असं म्हटलं होतं,” असं ममता यांनी सांगितलं आहे.
रणवीर एका झोपडपट्टीत वास्तव्य करत होते. अन्नासाठी ते पूर्णपणे रेस्तराँवर निर्भर होते. घरासाठी घेतलेलं कर्ज आणि इतर खर्चासाठी त्यांच्याकडे पैसे नव्हते. त्य़ामुळे शुक्रवारी त्यांनी आपली मोठी बहिण दीपाला फोन करुन आपण घऱी येत असल्याचं सांगितलं. तिने कसं येत आहात असं विचारलं असता रणवीर यांनी सांगितलं की, “काहीच उपलब्ध नाही आहे. ना बस सुरु आहे ना ट्रेन…चालतच येत आहे”.
पाच वाजता फोन केला तेव्हा रणवीर यांनी आपण चालत आहोत असं सांगितलं. रात्री ९ वाजता जेव्हा त्यांनी फोन केला तेव्हा काहीतरी अडचण आल्याचं जाणवत होतं. त्यांनी आपला भाऊ पिंकी सिंह याला आपल्याला एक ट्रक थोडा पुढे सोडण्यासाठी तयार झाला असल्याचं सांगितलं. “पण ते थकले होते. त्यांना झोपायचं होतं. आम्हाला तुम्ही घऱी जिवंत सुखरुप यावं असं वाटत आहे असं आम्हीत त्यांना सांगितलं,” अशी माहिती पिंकी सिंहने दिली आहे.
शनिवारी सकाळी पिंकीने पुन्हा फोन केला तेव्हा रणवीर आग्रा येथे पोहोचले होते. पण त्यांना श्वास घेण्यासाठी त्रास होत होता. आपल्या छातीत दुखत असल्याचं ते सांगत होते. घाबरल्याने पिंकी यांनी कुटुंबातील इतर सदस्यांना उठवलं नाही. त्यांनी आपल्या भावोजींना फोन केला आणि माहिती दिली. त्यांच्यातील एकाने गावातील डॉक्टरकडे धाव घेतली आणि त्यांचं आयकार्ड मिळवलं. त्याच्या सहाय्याने तो दुचाकीवरुन आग्राच्या दिशेने निघाले.
इतर चुलत भावांनी धान्याची वाहतूक करणाऱ्या जीपसाठी पोलिसांकडून पास मिळवला आणि आग्राच्या दिशेने निघाले. पण यासाठी वेळ लागला. पण जेव्हा ते आग्रा येथे पोहोचले तेव्हा रणवीर यांचा मृतदेह रुग्णालयात निपचित पडला होता. ह्रदयविकाराच्या झटक्याने त्यांचा मृत्यू झाल्याचं पोलिसांनी त्यांना सांगितलं. यानंतर रणवीर यांचा मृतदेह गावी आणून शनिवारी अंत्यसंस्कार करण्यात आले.