Thursday, 23 April 2020

दुनिया में कहां से आया कोरोना वायरस, वैज्ञानिकों को मिल गया कनेक्शन का सबूत : संजय पाटील

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वैज्ञानिकों को म‍िला कोरोना वायरस का कनेक्‍शन


संजय पाटील: लॉस एंजिल‍िस :  NBT : दुनियाभर में महामारी का रूप ले चुके कोरोना वायरस के ओरिज‍िन को लेकर चल रही अटकलों के बीच अमेरिकी वैज्ञानिकों को बेहद अहम जानकारी हाथ लगी है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का मानना है कि कोरोना वायरस पहले जंगली जानवरों में पैदा हुआ और फिर इंसान भी इससे संक्रमित हो गए। कोरोना वायरस से पूरा विश्‍व प्रभावित है और अब तक 184,280 लोग इससे मारे गए हैं। यही नहीं दुनिया की आधी आबादी लॉकडाउन में अपनी जिंदगी बिताने को मजबूर है।

अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के शोधकर्ताओं ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी और पिछले एक दशक में आई संक्रामक रोगों का संबंध वन्‍यजीवों से है। यूनिवर्सिटी में प्रफेसर पाउला कैनन ने कहा, 'हमने ऐसी परिस्थितियां पैदा की हैं जिसमें मात्र कुछ समय के अंदर यह हो गया। यह कुछ समय बाद दोबारा होगा।' वैज्ञानिक अभी यह निश्चित नहीं हैं कि ताजा संक्रमण कैसे शुरू हुआ लेकिन उनका मानना है कि कोरोना वायरस घोड़े की नाल के आकार के चमगादड़ों से फैला है।


कैनन ने कहा कि इस बात के पर्याप्‍त साक्ष्‍य हैं कि कोरोना वायरस चमगादड़ से इंसान में फैला। वर्तमान समय में इस महामारी के ओरिज‍िन को लेकर सबसे अच्‍छा संक्रमण है। शोधकर्ताओं ने कहा कि चीन के वुहान शहर के एक मीट मार्केट से इंसानों में कोरोना वायरस फैला। इस मार्केट में जिंदा वन्‍यजीव बेचे जाते थे। उन्‍होंने कहा कि इसी तरह के संक्रमण कुछ साल पहले भी मर्स और सार्स के दौरान हुए थे।



शोधकर्ताओं ने कहा कि साक्ष्‍य बताते हैं कि मर्स वायरस चमगादड़ों से ऊंटों में फैला और ऊंटों से इंसान में इसका संक्रमण हुआ। वहीं सार्स के बारे में माना जाता है कि इसके वायरस चमगादड़ से बिल्लियों में फैले और वहां से इंसानों में प्रवेश कर गए। वैज्ञानिकों ने कहा कि इबोला वायरस भी चमगादड़ों से ही इंसानों में आया। इबोला वर्ष 1976, 2014 और 2016 में अफ्रीका में फैल चुका है। उन्‍होंने कहा कि हमें कोरोना वायरस के ऐसे कई जेनेटिक कोड मिले हैं जो चमगादड़ों में पाए जाते हैं।


कोरोना वायरस चीनी वैज्ञानिकों के 'पागलपन भरे प्रयोग' का परिणाम: रूसी वैज्ञानिक


चीन की वुहान लैब पर फ‍िर उठे सवाल
चीन की वुहान लैब पर फ‍िर उठे सवाल

मास्‍को : किलर कोरोना वायरस की मार से बेहाल रूस के एक बहुचर्चित माइक्रोबायोलॉजिस्‍ट ने दावा किया है कि वुहान के वैज्ञानिक प्रयोगशाला के अंदर 'पागलपन भरे प्रयोग' कर रहे थे। इन्‍हीं प्रयोगों का परिणाम कोरोना वायरस है। दुनियाभर में चर्चित प्रफेसर पीटर चुमाकोव ने दावा किया कि वुहान में चीनी वैज्ञानिक वायरस की रोग पैदा करने की क्षमता को परख रहे थे और उनका कोई 'गलत इरादा नहीं था।' हालांकि उन्‍होंने जानबूझकर इस जानलेवा वायरस को जन्‍म‍ दिया।
मास्‍को में एक संस्‍थान के मुख्‍य शोधकर्ता प्रफेसर चुमकोव ने कहा, 'चीन के वुहान स्थित प्रयोगशाला में वैज्ञानिक पिछले 10 साल से विभिन्‍न तरीके के कोरोना वायरस को व‍िकसित करने में सक्रिय रूप से लगे हुए थे। संभवत: चीनी वैज्ञानिकों ने ऐसा रोग पैदा करने वाली नस्‍ल पैदा करने के लिए नहीं बल्कि उनकी रोग पैदा करने की क्षमता को परखने के लिए ऐसा किया।'
प्रफेसर चुमकोव ने कहा, 'मेरा मानना है कि चीनी वैज्ञानिकों ने पागलपन भरे प्रयोग किए। उदाहरण के लिए उन्‍होंने जीनोम को अंदर डाला जिससे वायरस को इंसान की कोशिकाओं को संक्रमित करने की क्षमता हासिल हो गई। अब इन सब का विश्‍लेषण किया जा रहा है। वर्तमान कोरोना वायरस के पैदा होने की तस्‍वीर अब धीरे-धीरे साफ हो रही है।

एचआईवी की वैक्‍सीन बनाने के लिए कोरोना को दिया जन्‍म!
मास्‍को के अखबार कोमसोमोलेट्स से बातचीत में प्रफेसर चुमकोव ने कहा, 'कई चीजों को वायरस के अंदर डाला गया है जिसने जीनोम के स्‍वाभाविक सीक्‍वेंस का स्‍थान ले लिया है। इसी वजह से कोरोना वायरस के अंदर बेहद खास चीजें आ गई हैं। मुझे आश्‍चर्य हो रहा है कि इस वायरस के पीछे की कहानी लोगों के पास बहुत धीरे-धीरे आ रही है।'
उन्‍होंने कहा, 'मैं समझता हूं कि इस पूरे मामले की एक जांच होगी और इसके बाद इस तरह के खतरनाक वायरस के जीनोम को रेगुलेट करने के लिए नए न‍ियम बनाए जाएंगे। अभी इस वायरस के लिए किसी जिम्‍मेदार ठहराना ठीक नहीं होगा।' प्रफेसर चुमकोव ने कहा कि उन्‍हें लगता है कि चीनी वैज्ञानिक एचआईवी की वैक्‍सीन बनाने के लिए इस वायरस की अलग-अलग नस्‍ल बना रहे थे और उनका कोई गलत इरादा नहीं था।


इस महिला की डायरी में छिपा है कोरोना का आंखों देखा सीक्रेट, सच से डरा चीन

इस महिला की डायरी में छिपा है कोरोना का आंखों देखा सीक्रेट, सच से डरा चीन

चीन के वुहान से निकला वायरस भले ही पूरी दुनिया में त्रासदी मचा रहा है लेकिन चीन शुरू से ही इसकी जानकारी और सूचना के लिए मनमाना रवैया अपनाता रहा है. ना ही वो दुनिया को शुरुआती सूचना दे पाया, ना ही वह इसे अब तक अन्य देशों को समझाने में कामयाब रहा है. ऐसे में यह आरोप लगना लाजिमी है कि चीन की वजह से दुनिया इस तबाही तक पहुंच गई है. इसी बीच चीन के वुहान शहर में हुए लॉकडाउन के दौरान एक महिला द्वारा लिखी गई एक डायरी बाहर आ गई है.

दरअसल, जिस वक्त चीन के वुहान में कोरोना फैला, उस वक्त फैंग-फैंग नाम की महिला हर रोज डायरी लिखती थी, डायरी में वुहान का सारा सच लिखती थी. उसने मौत, मातम और यातना तक की दास्तान लिख दी. शुरू-शुरू में चीन के लोग भी उसके दीवाने हुए लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि पूरी कहानी जर्मन और इंग्लिश में आ रही है तो उन्होंने इस नायिका को खलनायिका बना डाला और फिर फैंग-फैंग को मौत की धमकियां मिलने लगीं.
अवॉर्ड विजेता लेखिका फैंग-फैंग को अब जान से मारने की धमकी मिल रही है. धमकी खुद चीन की तरफ से मिली है. और फैंग-फैंग का कसूर सिर्फ इतना है कि उन्होंने वो सच बयां किया है जो चीन में घटा है. उन्होंने इस वुहान वायरस के बारे में लिख दिया है, जो पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा है. उन्होंने 76 दिनों के वुहान लॉकडाउन में डायरी लिखी है.
फैंग-फैंग ने उस समय की वुहान की स्थिति, चीन अथॉरिटी की करतूत, अस्पतालों में मरीजों की दुर्दशा, श्मशान और कब्रिस्तानों में फैले मातम के बारे में लिखा. इतना ही नहीं उस महिला ने ये सब लिखा तो लिखा, लेकिन ऑनलाइन भी कर दिया. बस इसी डर से चीन उनके पीछे पड़ गया
क्या है वुहान डायरी? 

दरअसल, फैंग-फैंग की ये वुहान डायरी जर्मन और इंग्लिश में छपी है. फैंग फैंग ने डायरी के ऑनलाइन वर्जन में कुल 64 पोस्ट डाली हैं. उन्होंने किसी अच्छे रिपोर्टर की तरह जो देखा वो लिखा, जो सुना वो लिखा. जब दुनिया कोरोना को ठीक से जान तक नहीं पाई थी तभी उन्होंने डॉक्टरों के हवाले से दुनिया को बताया कि बीमारी संक्रामक है. उनकी साफगोई दुनिया के दिल में उतर गई, और बहुत से लोग फैंग-फैंग की लेखनी के कायल हो गए.

अगर उनकी डायरी के कुछ पन्नों पर नजर डालें तो 13 फरवरी को फैंग-फैंग एक कब्रिस्तान की तस्वीर लगाकर लिखती हैं, 'मुझे ये तस्वीर मेरे एक डॉक्टर मित्र ने भेजी है. यहां चारों तरफ फर्श पर मोबाइल फोन बिखरे पड़े हैं. कभी इन मोबाइल का कोई मालिक भी रहा होगा.' 

उस दौर में जब चीन की सरकार मौतों की संख्या छिपाने में लगी थी, फैंग-फैंग ने उजागर कर दिया कि कब्रिस्तानों में मोबाइल बिखरे पड़े थे, वो बिखरे मोबाइल संकेत थे कि मौतें किस रफ्तार से हो रही थीं.


17 फरवरी के पन्ने पर फैंग-फैंग ने लिखा, 'अस्पताल कुछ दिनों तक मृत्यु सर्टिफिकेट बांटते रहेंगे और शव वाहनों में कई शव श्मशानों तक पहुंचाए जाते रहेंगे और ये वाहन दिन में कई चक्कर लगाते रहेंगे.' 

फैंग-फैंग का मकसद सिर्फ मौत की तांडव गाथा लिखने की नहीं थी. उन्होंने अस्पतालों की दुर्दशा के बारे में भी लिखा. अस्पतालों में जगह नहीं है, डॉक्टर मरीजों को देख तक नहीं पा रहे, किसी को किसी की फिक्र ही नहीं है. ये सब भी उन्होंने लिखा.
हुआ भी ऐसा ही, जैसा फैंग-फैंग ने लिखा. पश्चिमी देशों की सैटेलाइट्स बताती रही थीं कि वुहान जल उठा था, इतनी लाशें उस दौरान जलाई गई थीं कि सैटेलाइट्स ऊपर से हवा में सल्फर की मात्रा का अनुमान लगाकर मौत के आंकड़े बता रहे थे. पश्चिमी देशों में इस बारे में बहुत कुछ लिखा गया. मगर चीन की रिकॉर्ड बुक में मौत के आंकड़े 3500 के आस-पास रहे. इन आंकड़ों को पिछले ही हफ्ते चीन ने थोड़ा संशोधित किया है.
वुहान डायरी की लेखिका फैंग-फैंग ने जो अपनी आंखों से देखा, उसे दुनिया को बताया. उन्होंने मौत की कहानी बताई. चीन की चालबाजी बताई. आंखों देखी कोरोना के कहर का एक-एक सच बताया. अपने शहर वुहान में मौत के तांडव की वजह गिनाई.
चीन भले ही फैंग-फैंग की जान का दुश्मन हो गया हो, लेकिन वो अपनी लेखनी पर अडिग हैं. तभी तो चीन का वो सच बाहर आ रहा है, जिसे दुनिया अब-तक कानाफूनी करते हुए कह रही थी.  कुल मिलाकर चीन चाहे जितनी दलील दे, लेकिन वुहान डायरी की लेखिका के खुलासे ने उसका एक और असली चेहरा सामने ला दिया है.
कैसे वुहान मौत का समंदर बन गया और पूरी दुनिया इसमें फंसी: 

जिस वुहान में एक दिसंबर को ही कोरोना का पहला मरीज आ गया था, वहां जनवरी तक आराम से अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें चल रही थीं. नतीजा ये हुआ कि कोरोना चीन से निकल दुनिया में फैल गया. हालात बिगड़ने के बाद चीन ने इस औद्योगिक नगरी को लॉकडाउन कर दिया, वो तारीख थी 23 जनवरी.
सबकुछ ठप सा पड़ गया. मार्केट बंद हो गए. सड़कें सूनी हो गईं. मॉल-सिनेमा हॉल सबकुछ लॉकडाउन के हवाले था. 76 दिनों तक शहर चीन के दूसरे हिस्सों से सील रहा. आरोप लगता रहा है कि कोरोना दुनियाभर में पांव ना पसार पाता अगर चीन ने वक्त पर जानकारी साझा की होती. हालात नहीं बिगड़ते अगर समय से कोरोना जैसे घातक वायरस की खबर अन्य देशों को साझा की गई होती, लेकिन चीन ने ऐसा कुछ नहीं किया.


आरोप ये भी हैं कि वुहान की वायरोलॉजी लैब से ही कोरोना जन्मा. चीन कहता रहा है कि ये वायरस चमगादड़ से इंसानों तक पहुंचा और तेजी से फैला. लेकिन तथ्यों के आधार पर ये बात गले नहीं उतरती. 18 साल पहले चीन पर सार्स को फैलाने का आरोप लगा था, और अब कोरोना वायरस फैलाने का. आरोप लगे हैं लैब की एक सीनियर रिसर्चर पर, जिसे अमेरिका ने बैट वुमेन का नाम दिया है.
कैसे दुनिया भर में फैला: 
दरअसल वुहान चीन का सबसे बड़ा औद्योगिक केंद्र है. इस वजह से दुनिया के कई देशों के लोग कारोबार के सिलसिले में वुहान पहुंचते हैं. वुहान के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सालाना करीब दो करोड़ लोगों का आना-जाना होता है. यहां से लंदन, पेरिस, दुबई समेत दुनिया के तमाम बड़े शहरों के लिए सीधी उड़ान सेवाएं हैं. दुनिया की 500 बड़ी कंपनियों में से 230 कंपनियों ने वुहान में निवेश कर रखा है.
कारोबार जगत में वुहान का वर्चस्व है. दिसंबर में जब कोरोना ने अपना असर डालना शुरू किया था तब भी कई देशों के लोग वुहान में मौजूद थे और जब वे अपने देश लौटे तो इस वायरस के साथ. अमेरिका, जापान, थाईलैंड, इटली, फ्रांस, यूएई, ब्रिटेन और ऐसे कई देशों के नागरिकों का वुहान से आना जाना रहा है.
और अंत में कोरोना का एपिसेंटर वुहान बन गया. लेकिन अड़ियल चीन ने कभी अपनी गलती नहीं मानी. वुहान में मरने वालों की संख्या भी चीन ने दबाकर रखी. अप्रैल तक जो चीन कोरोना से मौत का आंकड़ा 3869 बता रहा था, अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ने के बाद 17 अप्रैल को वो आंकड़ा 4632 कर दिया. इस महामारी को लेकर दुनिया भर में फजीहत के बाद चीन कह रहा है कि कोरोना का जैव हथियार से कोई लेना-देना नहीं है.


क्या चमगादड़ों से फैला है कोरोना, या बात कुछ और है, जानिए - दुनियाभर के शोध पर जानकारों की राय

क्या चमगादड़ों से फैला है कोरोना, या बात कुछ और है, जानिए - दुनियाभर के शोध पर जानकारों की राय

नागपूर : उपराजधानी को पूरी दुनिया में संतरे, जीरो माइल और दीक्षाभूमि के लिए जाना जाता है, लेकिन बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि संतरा नगरी को पूरे विश्व में चमगादड़ों पर शोध करने के लिए भी जाना जाता है। इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के जूलोजी विभाग में भारत में पाए जाने वाले चमगादड़ों पर शोध किया जाता है। यहां चमगादड़ों की करीब 109 मेगा और माइक्रोक्रिप्टोरियन प्रजातियां हैं।  इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की पूर्व निदेशक डॉ. कमर बानू करीम ने 35 साल चमगादड़ों पर शोध किया है। डॉ. करीम और उनके विद्यार्थी निसार अहमद खान ने कोरोना से संबंधित विश्व में चल रही शोध और प्रकाशित जर्नल का विश्लेषण कर भास्कर के साथ जानकारी साझा की और यह कोरोना वायरस चमगादड़ों से ही इंसानों में आया है।

कोरोना वायरस के कई प्रकार

डाॅ. करीम और उनके विद्यार्थी डॉ. निसार अहमद खान के विश्लेषण के कोरोना वायरस (सीओवीएस) आरएनए वायरस की तरह है, जो कि चमगादड़ और पक्षियों में पाया जाता है। कोरोना वायरस में ज्यादातर जानवरों से इंसानों और इंसान से इंसान में ट्रैवल करने वाले हैं।  कोराेना वायरस फैमिली की चार जीन होती है- अल्फा, बीटा, डेल्टा और गामा। चमगादड़ों में अल्फा और बीटा कोराना वायरस और पक्षियों में डेल्टा और गामा वायरस का स्रोत है। कोरोना शब्द पहली बार वायरोलॉजिस्ट के एक अनौपचारिक समूह के जर्नल "नेचर' में उपयोग किया गया था।
कभी नहीं हुए बीमार

डॉ. करीम ने बताया कि शोध के दौरान मैंने कई चमगादड़ों को गुफाओं, टनल, पुरानी जर्जर इमारतों, किले और पेड़ों से भी पकड़ा और पाला। बिना मास्क और दस्ताने के हम इनके सीधे संपर्क में आते थे। कई बार घंटों इनके साथ बिताते थे। उनके बारे में सब कुछ जानने के लिए हमने उनमें होने वाले वायरसों के भी बारे में जानकारी हासिल की। कई बार वह काट भी लेते थे। हम यह बात जानते थे कि उनके संपर्क में रहने से संक्रमित और बीमार होने का खतरा है, लेकिन कभी डरे नहीं। कभी किसी तरह की बीमारी और अन्य समस्याएं नहीं आई। मेरे साथ में काम करने वाले और विद्यार्थियों को भी कभी परेशानी नहीं हुई, जैसी स्थिति आज बनी हुई है।
भारत में 109 प्रजातियां | हमने अलग-अलग तरह के चमगादड़ों पर शोध किया।.
ज्यादातर शोध जीवन चक्र और एंब्रियोलॉजी और अन्य विषयों पर आधारित थे। इनमें मुख्य रूप से कार्निवॉरस, फ्रुजिवॉरस, नेक्टरीवॉरस और इसेंक्टिवॉरस होते हैं।  भारत में 17 चमगादड़ फैमिली की 109 प्रजातियां हैं। कॉर्निवॉरस जानवर खाने वाले, तो फ्रुजिवॉरस फल खाने वाले होते हैं। नेक्टरीवॉरस खून पीने वाले होते हैं, जबकि इसेंक्टिवॉसर कीड़े खाने वाले होते हैं। हम चमगादड़ों को बकरे का लिवर खिलाते थे। बूचड़खाने से खून लाकर उसे ट्रीट कर खून पिलाते थे। फल खाने वाले चमगादड़ाें को केले, खरबूज और दूसरे फल खिलाते थे।
मानव में कोरोना वायरस की 7 प्रजातियां मिलीं

मानव में कोरोना वायरस की अब तक 7 प्रजातियां मिली हैं। इसमें से चार OC43, -HKU1, KCov-229E और NL63 लगातार एक से दूसरे मानव में जाते है। लक्षण मामूली सर्दी, खांसी होती है। शेष 3 वायरस सेवर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS), मिडिल इस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) अौर सेवर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस-2 (SARS-CoV-2) व कोरोना वायरस डिसीज-2019 कोविड-19 है।
चमगादड़ों को मानव के वायरस से संक्रमित होने का डर

कोरोना वायरस चमगादड़ों से इंसानों में आया है, इसकी पुष्टि अभी भी नहीं हुई है। कई शोधकर्ताओं ने यह बात कही है। चार्ल्स एच कैलिशर ने 2006 में कहा था कि करीब 66 वायरस चमगादड़ों में पाए जाते हैं। फरमिन कूप ने बीमारी आने के बाद 2020 में 6 नए टाइप के नए वायरस बताए। साथ ही कहा कि यह हाल ही में चल रहा कोविड-19 वायरस से संबंधित नहीं है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने 2020 में कहा था कि भारत के चमगादड़ों की दो प्रजातियों में दो प्रकार के कोराेना वायरस मिले हैं। इसका कोई सबूत नहीं है, जिससे यह साबित कर सकें कि इनसे मानव बीमार हो सकते हैं। लॉस एंजिल्स टाइम्स में 21 अप्रैल को यह प्रकाशित किया गया था कि "कोरोना वायरस के लिए चमगादड़ों को दोषी बताया जा रहा है, जबकि चमगदड़ों को मानव के वायरस से संक्रमित होने का डर है।'
मेरे लिए खूबसूरत है यह जीव

डॉ. कमर बानू करीम, पूर्व निदेशक, इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का कहना है कि मेरे पास पेट्रोपस गिगांट्यस लार्ज फ्रुट बैट था। जिसे फल खिलाया जाता था। मेरे लिए चमगादड़ बहुत खूबसूरत हैं। इनके बारे में जानना सबसे अद्भुत है। 35 साल मैं इनके साथ रही हूं और शोध करती रही हूं।

ये हैं दुनिया के 10 सबसे घातक वायरस


कुछ दशकों में कई नए तरह के वायरस जानवरों से इंसानों में आए, जो बेहद खतरनाक साबित हुए और हजारों जानें लीं. कोविड-19 (Covid-19) भी इन्हीं में से एक है, जिसका स्त्रोत अभी पक्का नहीं हो सका है. लेकिन कोरोना (corona) ही नहीं, इसके अलावा भी कई ऐसे ह्यूमन वायरस (human virus) हैं, जो इससे कहीं ज्यादा घातक हैं.
Marburg virus
Marburg virus

साल 2014 से 2016 के दौरान इबोला आउटब्रेक हुआ. पश्चिमी अफ्रीका में फैली इस वायरल बीमारी से संक्रमित 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों की जान चली गई. इसे इबोला फैमिली का सबसे जानलेवा वायरस माना गया. अब कोरोना वायरस दुनिया के लगभग सभी देशों के 24 लाख लोगों को संक्रमित कर चुका है. बेहद संक्रामक इस बीमारी से 1 लाख 65 हजार जानें जा चुकी हैं. जानते हैं, ऐसे ही 10 सबसे घातक पैथोजन्स (वायरस) के बारे में.
साल 1967 में Marburg virus की खोज हुई थी. जर्मनी में एक लैब में काम करने वाले लोगों में ये वायरस देखा गया. पता चला कि संक्रमित लोग युगांडा से आए बंदरों के संपर्क में आए थे. मार्रबर्ग वायरस से संक्रमित में इबोला वायरस की तरह ही लक्षण दिखते हैं, जैसे आंतरिक रक्तस्त्राव होना, तेज बुखार और ऑर्गन फेल होने के साथ मौत. कांगो में भी बाद में ये बीमारी दिखी, जिसमें डेथ रेट 80% से ज्यादा थी.

अब बारी है Ebola virus की. साल 1976 में रिपब्लिक ऑफ सूडान और कांगो में इसका संक्रमण दिखा था. शरीर के फ्लूइड जैसे, खांसी, खून, बलगम के जरिए फैलने वाला ये वायरस बेहद घातक है. वहीं इबोला फैमिली के कई वायरस इंसानों पर कोई असर नहीं डालते हैं.

जर्मनी में एक लैब में काम करने वाले लोगों में ये वायरस देखा गया

Rabies के वायरस भी इसी श्रेणी में आते हैं. कुत्ते, बिल्ली, सुअर से लेकर कई तरह के चौपायों के काटने पर इसका डर रहता है. साल 1920 में सबसे पहले इस वायरस का पता चला. Boston University में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर Elke Muhlberger के मुताबिक ये आज तक पता चले वायरसों में सबसे घातक हो सकता है अगर समय पर इलाज न मिले. सीधे मस्तिष्क पर असर करने वाला ये वायरस अब भी भारत और अफ्रीकन देशों की बड़ी समस्या है.

HIV का वायरस भी घातक वायरसों की श्रेणी में है, जिसने 1980 के बाद से अब तक 32 मिलियन से ज्यादा जानें ली हैं. WHO के अनुसार अफ्रीकन देशों में हर 25 में से 1 वयस्क इससे संक्रमित है. यानी दुनिया में एक तिहाई लोग इसी वायरस के साथ रह रहे हैं. इसके लिए हालांकि एंटी वायरस दवाएं भी हैं, जिसे लेने पर बीमार शख्स सालों सामान्य जिंदगी जी सकता है.

हंता वायरस (Hantavirus) नाम के इस जानलेवा वायरस की खोज साल 1993 में हुई, जब अमेरिका में एक कपल की संक्रमण के कुछ ही दिनों के भीतर मौत हो गई. ये वायरस वैसे इंसानों से इंसानों में नहीं फैलता है, बल्कि संक्रमित चूहे के संपर्क में आने पर इसका संक्रमण फैलता है. बीमार चूहे के फ्रेश यूरिन के संपर्क में आने या उसकी लार को छूने से ऐसा होता है. यहां तक कि संक्रमित जीव के आसपास की हवा में भी ये वायरस रहते हैं और इससे भी इंसानों को ये बीमारी हो सकती है.

शरीर के फ्लूइड जैसे, खांसी, खून, बलगम के जरिए फैलने वाला ये वायरस बेहद घातक है
Influenza यानी फ्लू के वायरस भी काफी खतरनाक हो सकते हैं. WHO के अनुसार एक टिपिकल फ्लू सीजन में 5 लाख से ज्यादा मौतें हो सकती हैं. अबतक का सबसे घातक फ्लू Spanish flu को माना जाता है, जिससे 50 मिलियन से भी ज्यादा मौतें हुईं.

फिलीपींस और थाइलैंड में साल 1950 में सबसे पहले Dengue फीवर दिखा था. अब दुनिया का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा इससे प्रभावित हो चुका है. WHO की मानें तो मच्छरों से फैलने वाली ये बीमारी सालाना 50 से 100 मिलियन लोगों को प्रभावित करती है. हालांकि इसमें मौत की दर दूसरे वायरस की अपेक्षा कम है लेकिन अगर इलाज न मिले तो 20 प्रतिशत मामलों में मरीज की मौत हो सकती है. इसकी वैक्सीन खोजी जा चुकी है लेकिन इसकी शर्त ये है कि जिसे वैक्सीन दी जा रही है, वो पहले कभी डेंगू संक्रमित हो चुका हो. ऐसा न होने पर सीवियर डेंगू का खतरा रहता है, जिसमें जान भी जा सकती है.

Rotavirus भी काफी खतरनाक विषाणुओं में शुमार है. नवजात और छोटे बच्चों में इसकी वजह से सीवियर डायरिया हो जाता है. भारत में भी ये रोटावायरस बड़ी समस्या है, खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां साफ पानी की व्यवस्था नहीं है. साल 2008 में WHO के मुताबिक दुनियाभर में 453,000 से ज्यादा बच्चों की इस वायरस के संक्रमण से जान गई थी. हालांकि अब इसकी वैक्सीन आ चुकी है.

डेंगू वैक्सीन की शर्त ये है कि जिसे वैक्सीन दी जा रही है, वो पहले कभी डेंगू संक्रमित हो चुका हो
साल 2003 में सार्स (SARS-CoV) दिखा. चीन से इसकी शुरुआत हुई और जल्दी ही दो दर्जन से अधिक देशों में इसके मरीज पाए गए थे. इससे 774 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि अब तक ये पता नहीं लग सका कि सार्स किस जानवर से फैला था लेकिन कई वैज्ञानिकों का मानना है कि बिल्ली का मांस खाने की वजह से ये इंसानी शरीर तक पहुंचा. इसकी कोई वैक्सीन या पक्का इलाज नहीं है.

इसके बाद साल 2012 में आया मर्स (MERS-CoV ). इसे Middle East respiratory syndrome कहते हैं. सऊदी अरब में फैली इस जानलेवा बीमारी का स्त्रोत ऊंट थे. इसमें डेथ रेट 40% है, जो कि जानवरों से इंसानों में पहुंचे वायरस में सबसे घातक माना जा रहा है. इससे बचान के लिए भी अब तक टीका नहीं बन सका है.
इसके बाद बारी आती है कोविड-19 की, जो coronavirus परिवार का सबसे नया वायरस माना जा रहा है. इसे SARS-CoV-2 भी कहते हैं. चीन के वुहान से बीते साल दिसंबर में दिखा ये वायरस अब दुनिया के लगभग हर देश को अपनी चपेट में ले चुका है और 24 लाख से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं. इसके स्त्रोत का कोई पक्का प्रमाण नहीं है. माना जा रहा है कि संक्रमित चमगादड़ या कुत्ते से ये इंसानों तक पहुंचा.

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Author: verified_user

I AM POST GRADUATED FROM THE NAGPUR UNIVERSITY IN JOURNALISM

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